अंगद

अंगद : प्रभु रामचंद्र के वकील

धर्म

अंगद, रामायण के प्रमुख पात्रों में से एक। वह बाली और तारा के पुत्र और किष्किंधा के युवराज थे।यह रामचन्द्र की सहायतार्थ, बृहस्पति के अंश से निर्माण हुआ था अतएव भाषण कला में अत्यंत चतुर था। अंगद का परिचय उस समय हुआ जब राम और लक्ष्मण अपनी पत्नी सीता की खोज में थे। बाली की मृत्यु के बाद, सुग्रीव किष्किंधा का राजा बन गया और अंगद को युवराज नियुक्त किया गया। अंगद ने सुग्रीव के आदेश पर राम और लक्ष्मण की सहायता की और सीता की खोज में अपना योगदान दिया।

वानराधिपति सुग्रीव ने, दक्षिण दिशा की ओर जिन वानरों को सीता की खोज की हेतु से भेजा, उनका अंगद नायक था। सीता की खोज करते समय, पर्वत पर एक बडे असुर से इस की मुलाकात हुई, तथा उसने अंगद पर आक्रमण किया। उस समय उसे ही रावण समझकर, अंगद ने एक मुक्का उसके मुँह पर मारते ही वह रक्त की उलटी करने लगा तथा भूमी पर निश्चेष्ट गिर गया । सीता की खोज में असफल होने के कारण, सब वानरों ने प्रायोपवेशन करने का निश्चय किया। इतने में संपाति ने सीता का पता बताया। उसी समय समुद्रोलंघन कर, कौन कितने समय में पार जा सकता है, इसकी पूछताछ अंगद ने की। अंगद ने कहा कि, एक उडान में वह १०० योजन का अंतर पार कर सकता है । अन्त में यह काम हनुमान ने किया। रावण के साथ युद्ध करने के पूर्व, साम की भाषा करने के लिये राम ने अंगद को वकील के नाते भेजा था परंतु उससे कुछ लाभ नहीं हुआ ।

अंगद की वीरता का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण लंका में उनके द्वारा रखे गए “अंगद के पांव” की घटना है। जब रामचंद्र और उनकी सेना लंका पर आक्रमण करने के लिए समुद्र पार कर चुके थे, तब अंगद ने रावण के दरबार में जाकर उसे समर्पण का संदेश दिया। रावण ने अंगद का अपमान करने का प्रयास किया, तब अंगद ने चुनौती दी कि अगर कोई भी राक्षस उनके पैर को हिला सके तो रामचंद्र युद्ध छोड़ देंगे। रावण के दरबार में कोई भी अंगद के पांव को हिला नहीं सका। इस घटना ने रावण के दरबार में रामचंद्र की शक्ति और अंगद की वीरता का प्रदर्शन किया।

अंगदने इन्द्रजित के साथ यूद्ध कर के उसे जर्जर किया । कंपन के साथ युद्ध कर के उसका वध किया । नरांतक का, महापार्श्व का तथा वज्रदंष्ट का वध किया । कुंभकर्ण के साथ युद्ध करते समय, सब वानर उसका शरीर देख कर भयभीत हो गये। उस समय, वीररसयुक्त भाषण करके, सब वीरों को इसने युद्ध में प्रवृत्त किया । यह सारा कर्तृत्व ध्यान में रख कर, राज्याभिषेक के समय राम ने इसको बाहुभूषण अर्पण किये । सुग्रीव के बाद इसने किष्किंधा पर राज्य किया।

रामायण में अंगद का योगदान उनकी वीरता, बुद्धिमत्ता और निष्ठा के कारण अमर हो गया है। उन्होंने रामचंद्र के प्रति अपनी अटल भक्ति और समर्पण के साथ इतिहास में अपनी जगह बनाई है।

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