हनुमान जी की माता, अंजना देवी, भारतीय पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण और श्रद्धेय पात्र हैं। वे वानरराज केसरी की पत्नी और हनुमान जी की माता हैं। अंजना देवी की कथा उनके अद्वितीय साहस, भक्ति, और त्याग का प्रतीक है।
अंजना देवी का जन्म पुंजकस्थली नामसे अप्सरा के रूप में हुआ था। एक बार उन्होंने एक ऋषि का अनादर किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें श्राप मिला और वे पृथ्वी पर वानर रूप में जन्म लेने के लिए अभिशप्त हो गईं। इसी शाप के कारण यह पृथ्वी पर कुंजर नामक वानर की कन्या हुई। परंतु अन्य स्थानों पर , इसे गौतम ऋषि की कन्या माना गया है। उन्होंने केसरी से विवाह किया, जो वानर सेना के प्रमुख थे।
उनके विवाह के बाद, अंजना देवी ने कठिन तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया।मतंग ऋषि के कहने से अंजनी ने पति के साथ वेंकटाचल पर जा कर, पुष्करिणीतीर्थ पर स्नान कर के, वराह तथा वेंकटेश को नमस्कार किया। उसके बाद आकाशगंगातीर्थ पर वायु की आराधना की। १००० वर्षोतक तप होने के बाद वायु प्रगट हुआ और उसने वरदान दिया। उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनके एक अंश को अपने पुत्र के रूप में प्राप्त करेंगी। इसी वरदान के फलस्वरूप हनुमान जी का जन्म हुआ।
हनुमान जी का जन्म एक दिव्य घटना थी। जब अंजना देवी ने हनुमान को जन्म दिया, तो वे तुरंत ही असाधारण शक्तियों से संपन्न हो गए। हनुमान जी की इन शक्तियों का श्रेय उनकी माता अंजना के तप और भक्ति को जाता है। अंजना देवी ने हनुमान जी को एक वीर, भक्त, और ज्ञानवान वानर बनने के लिए प्रेरित किया। हनुमान जी की सभी महानताओं का मूल उनकी माता अंजना की शिक्षाओं और प्रेम में है।