ई. वी. रामास्वामी पेरियार (नायकर) : (17 सितंबर 1879–24 दिसंबर 1973). द्रविड आंदोलन के प्रमुख नेता और तमिल जनता में पेरियार (महान आत्मा) और थानथाई (पिता) के रूप में सम्मानित समाज सुधारक थे। उनका पूरा नाम एरोड व्यंकटप्पा रामास्वामी नायकर था। तमिलनाडु के एरोड में कन्नड नायकर जाति के संपन्न कट्टर हिंदू परिवार में उनका जन्म हुआ था। उनके पिता व्यंकटप्पा व्यापारी थे। माता का नाम चिन्ना थायाम्मल उर्फ मुथम्मल था। कृष्णस्वामी ई. वी. उनके बड़े भाई थे और कन्नमल और पुन्नथाई उनकी छोटी बहनें थीं। उनकी स्कूली शिक्षा केवल तीन साल की थी। उन्नीस साल की उम्र में उनका पहला विवाह रिश्तेदार नागमल्ल से हुआ।
उन्होंने अपने पिता के व्यवसाय में सहायता करना शुरू कर दिया। बचपन से ही वे परंपरागत, अंधविश्वासी और धर्मग्रंथों में बताए गए विचारों पर सवाल उठाते रहते थे। गरीबों और अस्पृश्यों की स्थिति देखकर उनका मन दुखी हो गया और उन्होंने धर्मग्रंथों का आलोचनात्मक अध्ययन किया। इसके कारण उनकी हिंदू धर्म पर आस्था कमजोर हो गई और उन्होंने सामाजिक समानता और अस्पृश्य उद्धार का प्रचार शुरू किया। 1905 से पेरियार ने सामाजिक कार्य शुरू किया। इस समय एरोड में प्लेग की महामारी फैली थी। कई लोग मरने लगे थे, जिससे कई अमीर व्यापारियों ने एरोड छोड़ दिया। लेकिन पेरियार ने बीमारों की सेवा की और मृतकों का स्वयं अंतिम संस्कार किया।
1918 में वे एरोड नगरपालिका के अध्यक्ष बने। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की सलाह पर उन्होंने कांग्रेस में प्रवेश किया। 1920 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भाग लिया। इस आंदोलन का हिस्सा बनकर उन्होंने विभिन्न संस्थाओं के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव पदों से इस्तीफा दे दिया। इस असहयोग आंदोलन में उन्हें जेल भी जाना पड़ा। अस्पृश्यों पर लगे प्रतिबंधों को दूर करने के लिए त्रावणकोर में हुए वैक्कोम सत्याग्रह में उन्होंने भाग लिया। कांग्रेस में वरिष्ठ वर्ग के नेताओं की नीतियों से असंतुष्ट होकर उन्होंने पार्टी छोड़ दी। तमिल और उपेक्षित समाज को ब्राह्मण वर्चस्व के खिलाफ संगठित किया। पददलित समाज के अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने 1925 में स्वाभिमान आंदोलन शुरू किया। अंतरजातीय विवाह और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और देवदासी प्रथा को बंद करने के विधेयक का पूरा समर्थन किया।
1931 में उन्होंने रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस और स्पेन का दौरा किया। 1933 में उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ बगावत करने का आह्वान किया और इसके कारण उन्हें फिर से जेल जाना पड़ा। पहले कांग्रेस मंत्रिमंडल के दौरान 1937 में उन्होंने हिंदी विरोधी आंदोलन शुरू किया, जिसके लिए उन्हें फिर से जेल जाना पड़ा। 1944 में उन्होंने पुराने जस्टिस पार्टी को द्रविड कळघम नामक नए दल में परिवर्तित कर दिया। उनके दल का उद्देश्य स्वतंत्र और वर्णभेद रहित द्रविडनाडू की स्थापना था। पेरियार ने पहली पत्नी के निधन के बाद 28 वर्षीय मणिअम्माई से 1949 में दूसरी शादी की। इसके विरोध में अन्ना दुरई के नेतृत्व में कुछ अनुयायियों ने नया दल द्रविड मुन्नेत्र कळघम की स्थापना की। यह नया दल मुख्य रूप से चुनाव लड़ने के लिए अस्तित्व में आया था। हालांकि दल में विभाजन हुआ, पेरियार का तमिल जनता पर व्यक्तिगत प्रभाव कम नहीं हुआ।
1971 में उन्होंने अंधविश्वास निर्मूलन सम्मेलन आयोजित कर धर्म, जाति और भाषा के आधार पर होने वाले सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने की सरकार से अपील की और हिंदी का विरोध किया। 1934 से ही उन्होंने सामाजिक क्रांति को अपना जीवन समर्पित कर दिया था। उनके अनुसार, हिंदू धर्म ब्राह्मणों के वर्चस्व और एकाधिकार का साधन है, मनुस्मृति अमानवीय है और पुराण केवल परीकथाएं हैं। वे वर्ण व्यवस्था, बाल विवाह और सख्त वैधव्य के खिलाफ प्रचार करते रहे। उनके उल्लेखनीय ग्रंथों में ‘द वर्ल्ड टू कम’, ‘व्हाय द राइट्स फॉर कम्यूनल रेजर्वेशन’, ‘वर्ड्स ऑफ फ्रीडम: आइडिया ऑफ नेशन’, ‘सच्ची रामायण’ शामिल हैं। उन्होंने ‘कुटियरसू’ (1925), ‘रिव्होल्ट’ (1928), ‘पकुत्तरिवू’ (1934) और ‘विधुथालई’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
वेल्लोर में 94 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।
संदर्भ:
- Jeyaraman, Bala, Periyar: The Political Biography of E. V. Ramasamy, New Delhi, 2013.
- Veeramani, K., Collected Works of Periyar E. V. R., Chennai, 2005.