एम. एफ. हुसेन: भारतीय चित्रकला का महानायक

चित्रकला

अंतरराष्ट्रीय कीर्ति के भारतीय चित्रकार। फोटोग्राफी, फिल्म निर्माण, कविता जैसे कई क्षेत्रों में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ने वाले बहुआयामी व्यक्तित्व के रूप में उनकी पहचान है। उनका पूरा नाम मकबूल फिदा हुसेन था, लेकिन एम. एफ. हुसेन के नाम से ही वे प्रसिद्ध थे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

एम. एफ. हुसेनका जन्म महाराष्ट्र के पंढरपुर में फिदा हुसेन और झूनाइब के परिवार में हुआ। बचपन में ही उनकी मां का निधन हो गया। कुछ समय बाद उनके पिता ने दूसरा विवाह किया और यह परिवार इंदौर में बस गया। हुसेन को उनके पिता ने इस्लाम धर्म की शिक्षा के लिए अपने ससुराल सिद्धपुर (गुजरात) भेजा। इसके बाद उनकी स्कूली शिक्षा इंदौर में हुई। आगे चलकर उन्होंने वी. डी. देवळालीकर की कला स्कूल में कुछ समय तक कला शिक्षा ली। वे इंदौर में पढ़ाई के दौरान क्लासिकल शैली के चित्र बनाना शुरू कर चुके थे। इंदौर के होलकर प्रदर्शन में उनके चित्र को स्वर्ण पदक मिला था।

करियर की शुरुआत

1934 में हुसेन मुंबई आए। सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट में द्वितीय वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने शिक्षा छोड़ दी और मुंबई में फिल्म के बड़े पोस्टर (पोस्टर्स) रंगने लगे। इसी दौरान उनकी प्रसिद्ध वरिष्ठ चित्रकार ना. श्री. बेंद्रे से मुलाकात हुई। उनके मार्गदर्शन में हुसेन को बड़े आकार के चित्र रंगने का अभ्यास मिला; लेकिन इससे अधिक आमदनी न होने के कारण उन्होंने लकड़ी के खिलौने बनाने की नौकरी स्वीकार की। खिलौनों के डिजाइन खुद बनाने की इस आदत ने उनकी चित्र शैली को आगे मदद की।

सेन के चित्र 1940 के आसपास लोगों के सामने आने लगे। बॉम्बे आर्ट सोसाइटी की वार्षिक प्रदर्शनी में उनका सुनहरा संसार चित्र प्रदर्शित हुआ (1947); और उसी समय कुंभार चित्र भी प्रदर्शित हुआ। ग्रामीण जीवन की पृष्ठभूमि पर आधारित उनके ये चित्र विशेष रूप से लोकप्रिय हुए। इसी साल फ्रांसिस न्यूटन सोझा के साथ प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप (प्रगतिशील कलाकार समूह) की स्थापना की गई। इस समूह के सभी कलाकारों की कला दृष्टि आधुनिक थी। रंग और आकार को देखने की उनकी पश्चिमी शैली और तकनीक उनकी चित्रकला की विशेषता थी। बाद में सोझा, रज़ा और अकबर पदमसी पेरिस गए और यह समूह समाप्त हो गया; लेकिन हुसेन की कला साधना जारी रही। उनके चित्रों का पहला स्वतंत्र प्रदर्शन 1950 में ज्यूरिख में हुआ। 1952 में उन्हें चीन जाने का अवसर मिला। वहां के प्रसिद्ध चित्रकार चि पै हुंग (Hsü Pei-hung – Xu Beihong) के घोड़ों के चित्रों से प्रेरणा पाकर उन्होंने घोड़ों की चित्रमाला बनाई।

हुसेन कि  जीवनाभिमुखता 

हुसेन का जीवनाभिमुख विषयों की ओर झुकाव था, जिसे उन्होंने मानवी आकृतियों के माध्यम से अभिव्यक्त किया। अमूर्त अभिव्यक्तिवादी (एब्स्ट्रैक्ट एक्सप्रेशनिज्म) पश्चिमी शैली से भारतीय परंपरा के विषयों को चित्रित किया। होली, बालाराम स्ट्रीट, मराठी महिलाएं, टोकरी में बच्चा, गुड़िया की शादी, रेड, न्यूड आदि उनके प्रसिद्ध चित्र हैं। लॉर्ड और लेडी रिसीव्ड बाय हिज हाइनेस महाराजा होलकर चित्र में इंदौर का संदर्भ है। उन्होंने अब तक पचास हजार से अधिक चित्रकृतियाँ बनाई हैं, जिनमें स्पाइडर और द लैंप, इमेजिस ऑफ द ब्रिटिश राज, मदर टेरेसा, पोर्ट्रेट ऑफ एन अम्ब्रेला, घाशीराम कोतवाल (विजय तेंडुलकर के नाटक पर आधारित) जैसी प्रसिद्ध चित्रकृतियाँ शामिल हैं। रामायण, महाभारत और हाज यात्रा उनकी प्रसिद्ध चित्रमालाएं हैं। इनमें से रामायण और महाभारत की मालाएं उन्होंने राम मनोहर लोहिया के सुझाव पर चित्रित की थीं।

कलाशैली

गहरे रंग और मुक्त तथा दमदार रेखाएं हुसेन की चित्रकारी की विशेषताएँ हैं और उन्होंने एक्रिलिक जैसे माध्यम का प्रभावी उपयोग किया। सेरीग्राफ और सुलेखन का भी उत्कृष्ट उपयोग उन्होंने किया। उनके चित्र प्रतिमांकित होते हैं, और उनमें प्रतीकात्मकता भी होती है। जलरंग में उनका हाथ सधा हुआ था। उनके चित्रों, चित्र रंगने में और उनके जीवन में एक तीव्र लगाव (पैशन) दिखाई देता है। उन्होंने व्यक्तिचित्र, भित्तिचित्र, चित्रजवनिका (टैपेस्ट्री) जैसे चित्रप्रकार भी समान शक्ति के साथ संभाले।

प्रसिद्ध कलाकृतीया

मद्रास (चेन्नई) के कला संग्रहालय में जाकर हुसेन ने चोल मूर्तियों और खजुराहो मूर्तियों की 200 रेखांकन बनाए (1954)। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी उन्हें व्यक्तिचित्र के लिए सिटिंग दी थी। 1987 में उन्होंने प्रसिद्ध भारतीय भौतिक विज्ञानी सर चंद्रशेखर व्यंकट रमन को श्रद्धांजलि स्वरूप ‘द रमन इफेक्ट’ (रमन प्रभाव) पर चित्रमाला बनाई। जपान के हिरोशिमा-नागासाकी शहरों के विध्वंस की स्मृति में ‘नेवर अगेन’ प्रदर्शनी के प्रवेशद्वार पर सु. दस मीटर (33 फुट) का कैनवास हुसेन ने रंगा था। भारत के राष्ट्रपति के हाथों तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को उपहार स्वरूप दिए गए महात्मा गांधी के चित्र को भी हुसेन ने ही चित्रित किया था। हुसेन ने 1971 में साओ पाउलो (ब्राज़ील) में द्विवार्षिक चित्रप्रदर्शनी में महाभारत पर चित्रमाला प्रदर्शित की थी। महान स्पैनिश चित्रकार पाब्लो पिकासो को भी वहां निमंत्रण मिला था। 1992 में मुंबई की जहाँगीर आर्ट गैलरी में हुसेन द्वारा आयोजित ‘श्वेतांबरी’ प्रदर्शनी ने कला जगत में खलबली मचा दी थी।

फिल्म उद्योग से  संबंध

फिल्म उद्योग से भी हुसेन का निकट संबंध रहा है। फिल्म्स डिविजन (प्रभाग) के लिए उन्होंने थ्रू द आइज ऑफ अ पेंटर (1967) लघु फिल्म का निर्माण किया था, जिसके लिए उन्हें बर्लिन के अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में गोल्डन बियर पुरस्कार मिला। उन्होंने कुछ अंग्रेजी कविताएँ भी की हैं। सूफी काव्य का पाठ कर उन्होंने उस पर चित्रमाला बनाई थी (1978)। गजगामिनी (2000) और मीनाक्षी: अ टेल ऑफ थ्री सिटीज हिंदी फिल्मों का निर्माण और निर्देशन भी उन्होंने किया।

हुसेन के चित्रों पर कई पुस्तकें

हुसेन के चित्रों पर कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनमें अयाज एस. पीरभॉय की पेंटिंग्स ऑफ हुसेन (1955) एक उल्लेखनीय पुस्तक है। टाटा स्टील इंडस्ट्रीज ने उनके संबंध में पाँच किलोग्राम वजन की एक पुस्तक प्रकाशित की (1988)। 1983 में पंडोल आर्ट गैलरी ने स्टोरी ऑफ अ ब्रश पुस्तक हुसेन पर प्रकाशित की, जिसमें उनकी कहानी उनके ही हस्ताक्षर में छापी गई है। उनके चित्रों की एक और दुर्लभ पुस्तक ट्रिंगल्स है। यह पुस्तक हुसेन के साथ ब्रिटिश लेखक डेविड वार्क और ज्योतसिंग की संयुक्त रचना है, लेकिन इसकी केवल 500 प्रतियाँ ही छापी गईं।

सन्मान , विवाद और निर्वसन

हुसेन को चित्रकला में उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिले। इनमें पद्मश्री (1966), पद्मभूषण (1973) और पद्मविभूषण (1991) राष्ट्रीय सम्मान; मध्य प्रदेश सरकार का कालिदास सम्मान (1988) और केरल सरकार का राजा रविवर्मा पुरस्कार (2007) शामिल हैं। रॉयल इस्लामिक स्ट्रैटेजिक स्टडीज सेंटर ने हुसेन को मुस्लिम प्रभावी व्यक्तित्वों में से एक के रूप में सम्मानित किया (2010)। चीन में आयोजित विश्व शांति परिषद (1952) में डॉ. सैफुद्दीन किचलू की अध्यक्षता में भाग लेने वाले 60 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल में हुसेन भी शामिल थे। 1986 में उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया गया; लेकिन इतनी अधिक लोकप्रियता और सम्मान प्राप्त होने के बावजूद हुसेन का व्यक्तित्व हमेशा विवादास्पद रहा। हिंदू देवताओं के अपमानजनक चित्रों के संदर्भ में हिंदू संगठनों ने आक्रामक रुख अपनाया। 2006 में उन्होंने भारत के नक्शे को ढकने वाली नग्न महिला के रूप में भारत माता का चित्र बनाया। विभिन्न हिंदू संगठनों ने इस चित्र पर आपत्ति जताई, जिसके कारण हुसेन को सार्वजनिक माफी मांगकर, प्रदर्शनी से वह चित्र हटाना पड़ा। उसी वर्ष हरिद्वार न्यायालय ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। उसे सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगित कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने उनके उस विवादास्पद भारत माता चित्र को केवल कला का एक नमूना-अभिव्यक्ति मानकर उन्हें निर्दोष करार दिया (2008); लेकिन हुसेन को 2009 में देश छोड़ना पड़ा।

भारत छोड़ने के बाद

भारत छोड़ने के बाद वे दुबई में रहे। वहां उन्होंने बाद में ‘रेडलाइट म्यूजियम’ की स्थापना की। भारतीय नागरिकता छोड़कर उन्होंने बाद में कतर की नागरिकता स्वीकार की (2010)। वहां उन्होंने अरबी संस्कृति के इतिहास और भारतीय संस्कृति के इतिहास पर दो महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम किया। जीवन के अंतिम कुछ वर्ष उन्होंने दोहा, कतर और लंदन में बिताए; लेकिन भारत लौटने की तीव्र इच्छा भी व्यक्त की।

लंदन में हृदयाघात से हुसेन का निधन हो गया।

संवेदनशील कलाकार होने के नाते हुसेन की लगातार प्रयोगशीलता ही उनकी ताकत थी। उनके हर चित्र में एक आश्चर्यचकित करने वाला दृश्य-प्रभाव होता है। वह उनके व्यक्तित्व का एक अविभाज्य हिस्सा था। उनका उल्लेख भारत के पिकासो के रूप में किया जाता है। विषय में पूरी तरह डूबकर व्यक्त होते रहना, जीवन में उद्देश्य के प्रति समर्पित रहना, सफलता-असफलता की परवाह किए बिना निडरता से आगे बढ़ते रहना उनका स्वभाव था।

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