इलेक्ट्रॉनिक संगणकों की प्रगति इलेक्ट्रॉनिकी के विकास के अनुसार हुई। कंप्यूटर के इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर घटक, तार्किक संगठन और सॉफ्टवेयर या प्रोग्रामिंग तकनीकें इनके अनुसार ऐतिहासिक वर्गीकरण किया जाता है और इस समूह को कंप्यूटर की पीढ़ी कहा जाता है। इस प्रकार से कंप्यूटर की प्रगति में प्रत्येक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी चरण को पीढ़ी द्वारा दर्शाया जाता है। अधिकाधिक सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक भाग बनाने की संभावना बढ़ने से लगातार इस प्रत्येक चरण की अवधि में कंप्यूटर की क्षमता और कार्यक्षमता में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई और इसका आकार और मूल्य में बड़ी कमी आई। ऐसा होते हुए भी इनपुट, स्टोरेज (मेमोरी), कंट्रोल, प्रोसेसिंग, और आउटपुट कंप्यूटर की मूलभूत कार्यप्रणाली के रूप में बने रहे।
पहली पीढ़ी: बीसवीं शताब्दी के आरंभ में निर्वात नलिकाएं इलेक्ट्रॉनिक प्रयोग के रूप में खोजी गईं। इससे कंप्यूटर की प्रगति में पहली क्रांति हुई और पहली पीढ़ी के कंप्यूटर बने। इनमें चलने वाले यांत्रिक भाग नहीं थे। निर्वात नलिकाएं यांत्रिक प्रयोग से बहुत तेज, अधिक विश्वसनीय और लंबी आयु वाली थीं, इसलिए यह कंप्यूटर के लिए आदर्श प्रयोग बन गई। आयोवा स्टेट यूनिवर्सिटी के एटनसॉफ – बेरी कंप्यूटर (एबीसी) यह निर्वात नलिकाओं पर आधारित पहला कंप्यूटर था और यह आईबीएम का हार्वर्ड मार्क – 1 इस कंप्यूटर के साथ बना (1944)। पहली पीढ़ी के कंप्यूटर आकार में बड़े थे। एनीक, यूनिवैक I और अधिक मेमोरी वाला यूनिवैक II (यूनिवर्सल ऑटोमैटिक कंप्यूटर) यह पहली पीढ़ी के कंप्यूटर थे।
दूसरी पीढ़ी : 1947 में ट्रांजिस्टर यह अर्धचालक इलेक्ट्रॉनिक प्रयोग बेल टेलीफोन लेबोरेटरी में विकसित हुई। दस वर्षों से अधिक समय तक इसके विकास के बाद यह कंप्यूटर में निर्वात नलिकाओं के बदले में उपयोग की जाने लगी। ट्रांजिस्टर का उपयोग करने वाले कंप्यूटर 1959 में व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हो गए। उस वर्ष पहला एकीकृत परिपथ (इंटीग्रेटेड सर्किट आईसी) विकसित होने के कारण ट्रांजिस्टर चिप्स पर रोधक, धारित्र जैसे अधिकाधिक घटक लगाए जाने लगे।
ट्रांजिस्टर निर्वात नलिकाओं के मुकाबले आकार में बहुत छोटे और अधिक विश्वसनीय थे और इसके लिए बिजली की खपत भी कम होती थी। इसलिए पहली पीढ़ी के कंप्यूटर की तुलना में दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर बहुत छोटे हो गए और उनका विभिन्न प्रकार से उपयोग करना संभव हो गया। लेकिन कार्य करने की गति निर्वात नलिकाओं के समान थी। इसके बाद निर्वात नलिकाओं के बदले ट्रांजिस्टर नियंत्रण, अंकगणितीय और तार्किक परिपथों में उपयोग किए गए। इन कंप्यूटर की सुधारित चुंबकीय कोर मेमोरी के कारण वे अधिक कार्यक्षम, तेज और छोटे हो गए। दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर लगभग पंद्रह वर्षों तक उपयोग में थे।
तीसरी पीढ़ी: एकीकृत परिपथ (आईसी) यह ठोस अवस्था प्रयोग के कारण छोटे सिलिकॉन चिप्स पर सैकड़ों ट्रांजिस्टर, डायोड, रोधक जैसे घटक लगाए जाने लगे। 1968-80 के दौरान एक चिप पर लगाए जाने वाले घटकों की संख्या हर वर्ष दोगुनी हो गई। इससे कंप्यूटर की तीसरी पीढ़ी आई। इसमें सूक्ष्म कंप्यूटर और मेनफ्रेम (बड़े आकार के) दोनों प्रकार के कंप्यूटर आते हैं। आईबीएम सिस्टम/360 यह मेनफ्रेम कंप्यूटर का उत्कृष्ट उदाहरण है। एकीकृत परिपथों के कारण ये कंप्यूटर अत्यंत शक्तिशाली हो गए। इसमें एकीकृत परिपथ अधिक छोटे होने के कारण उनका आकार अधिक छोटा हो गया। बड़े पैमाने पर एकीकृत परिपथ (लार्ज स्केल इंटीग्रेशन एलएसआई) इसके बाद की प्रगति के कारण एक एकीकृत परिपथ पर हजारों ट्रांजिस्टर और उससे जुड़े घटक लगाए जाने लगे। इस तरह से सूक्ष्म परिपथ के कारण सूक्ष्मप्रक्रियक (माइक्रोप्रोसेसर या चिप पर कंप्यूटर) बने।
सूक्ष्मप्रक्रियक में केंद्रीय प्रक्रिया इकाई (सीपीयू), अंकगणितीय, नियंत्रण और तार्किक सभी परिपथ शामिल होते हैं। इस कारण टेलीविजन के बराबर या डेस्क पर रखे जाने योग्य व्यक्तिगत कंप्यूटर और बुद्धिमान दूरस्थ टर्मिनल बनाना संभव हो गया। स्टोरेज मेमोरी के लिए चुंबकीय मेमोरी की जगह अर्धचालक मेमोरी का उपयोग बढ़ने लगा। एलएसआई से अनियत संदर्भ मेमोरी (रैंडम एक्सेस मेमोरी आरएएम) आई। इस प्रकार सूक्ष्मप्रक्रियक और आरएएम के कारण कंप्यूटर में क्रांति हुई और उनकी तीसरी पीढ़ी आई।
चौथी और भविष्य की पीढ़ियाँ: इंटेल 4004 (1971) यह चौथी पीढ़ी का कंप्यूटर माना जाता है। इस समय केंद्रीय प्रक्रिया इकाई पहली बार एक चिप पर बनाई गई। इसका वजन कुछ औंस (1 औंस = 28.3 ग्राम) था और इसके लिए कुछ वाट बिजली की जरूरत होती थी। इंटेल 8086 (1978) इस सूक्ष्मप्रक्रियक की 32 चौ. मिमी. क्षेत्रफल की चिप पर 29 हजार घटक थे। इसके बाद के मोटोरोला एमसी 68,000 इस सूक्ष्मप्रक्रियक में प्रत्येक चिप पर 68,000 और 1982 साल के ह्यूलेट पैकार्ड इस 32-बिट सूक्ष्मप्रक्रियक में थोड़ी बड़ी चिप पर 450,000 घटक थे। इस तरह से एलएसआई और वीएलएसआई (वेरी लार्ज स्केल इंटीग्रेशन) पर आधारित अधिक छोटे घटकों के उपयोग के कारण कंप्यूटरका आकार और छोटा हो गया।
चौथी पीढ़ी के कंप्यूटर तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटर से विशेष भिन्न नहीं लगते। लेकिन वीएलएसआई इनका विशेषता है। इस कारण से सस्ते हो चुके ये साधारण कंप्यूटर घर-घर और स्कूलों में उपयोग में आए। इसके बाद कंप्यूटर को एक-दूसरे से जोड़कर स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय संगणक नेटवर्क स्थापित करने की प्रणाली विकसित हुई। इस प्रकार से सभी समाज घटकों तक कंप्यूटर पहुंच गए। इससे आर्थिक, बौद्धिक और वाणिज्यिक कार्य तेजी से होने लगे।
कंप्यूटर तकनीक के विकास के प्रत्येक महत्वपूर्ण चरण पर कंप्यूटर पीढ़ी बदलने का माना जाता है। लेकिन इन पीढ़ियों के बीच की सीमारेखा स्पष्ट और निर्धारित नहीं होती। चौथी पीढ़ी में शुरू हुए सूक्ष्म कंप्यूटर का उपयोग अब भी प्रगति पर है। इसलिए पाँचवीं पीढ़ी समानांतर कंप्यूटर और सिंथेटिक बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) तकनीक का उपयोग करने वाले कंप्यूटर की मानी जाती है।
सिंथेटिक बुद्धिमत्ता वाले कंप्यूटर मनुष्य की तरह विचार कर सकेंगे और अनुभव से अपने कार्य में सुधार करेंगे। ऐसी क्षमता वाले समानांतर प्रोसेसिंग करने वाले कंप्यूटर अब अस्तित्व में हैं। वीएलएसआई, समानांतर कंप्यूटर, मल्टीप्रोग्रामिंग जैसी तकनीकों के उपयोग और सॉफ्टवेयर में बड़े सुधार और ज्ञान आधारित प्रणाली के कारण सिंथेटिक बुद्धिमत्ता वाले संगणकों के विकास का मार्ग प्रशस्त हो रहा है। अनुपम – अमेय, परमपद्म आदि भारत के समानांतर सुपर कंप्यूटर में प्रति सेकंड में कुछ हजार बिलियन तक की संगणना करने की क्षमता है, इसलिए वे पाँचवीं पीढ़ी के कंप्यूटर हैं।