कतला मछली

कतला मछली

प्राणिविज्ञान

कतला : जिनके शरीर में हड्डियों का कंकाल होता है ऐसे मछलियों के सायप्रिनिडी कुल के कतला वंश की यह मछली है। कार्प नाम से जानी जाने वाली मछलियों के समूह में यह आती है। इसका वैज्ञानिक नाम कटला कटला है। कतला यह भारतीय नाम अंग्रेजी भाषा में भी प्रचलित है। महाराष्ट्र में इस मछली को तांबरा कहते हैं लेकिन कुछ स्थानों पर कतला नाम भी प्रचलित है।

कतला मीठे पानी में रहने वाली मछली है और भारत में हर जगह पाई जाती है। कृष्णा नदी के दक्षिण में यह पहले दुर्लभ थी, लेकिन अब मत्स्य संवर्धन के कारण दक्षिण में इसका प्रसार तेजी से हो रहा है।

इसका शरीर मजबूत होता है और इसकी लंबाई १.८ मीटर तक होती है। पीठ का रंग धूसर और बगल का चांदी जैसा होता है। पंख (चलने या संतुलन बनाए रखने में सहायक त्वचा की पेशीय तहें, पर) गहरे रंग के होते हैं लेकिन कभी-कभी काले भी हो सकते हैं। पुच्छपक्ष (पूंछ का पंख) गहरा द्विशाखित (दो भागों में बंटा हुआ) होता है। शरीर पर स्केल का केंद्रीय भाग गुलाबी या ताम्रवर्णी होता है। लेकिन उदर के स्केल सफेद होते हैं। सिर चौड़ा होता है और मुख चौड़ा होता है, जिसमें निचला होंठ काफी बाहर निकला होता है जिससे वह द्विगुणित लगता है।

कतला भारत में एक अत्यंत सस्ता खाद्य मत्स्य है। ६० सेंटीमीटर लंबाई तक की मछलियां खाने में स्वादिष्ट होती हैं। इससे अधिक लंबाई की मछलियों का स्वाद चरबट होता है। ५६ सेंटीमीटर लंबाई होने पर ये मछलियां पक्व हो जाती हैं। अंडे देने के लिए ये सपाट प्रदेश की नदियों में प्रवास करती हैं। अंडे गोल और पारदर्शी होते हैं जो डूबकर तले में जाते हैं। १६ — १८ घंटे में अंडे फुटकर ४.४ — ५.३ मिलीमीटर लंबाई के डिंभ (भ्रूण के बाद की स्वतंत्र रूप से जीने वाली अवस्था) बाहर आते हैं। छह सप्ताह में ये प्रौढ़ रूप धारण कर लेते हैं।

संवर्धन के लिए नदियों से अंगुलिक (लगभग उंगलियों जितनी लंबाई के बच्चे) एकत्रित कर संवर्धन तालाबों (टैंक) में छोड़ा जाता है। वहां १० — १५ सेंटीमीटर होने पर इन्हें तालाब में रखा जाता है। स्थिर पानी में इनकी तेजी से वृद्धि होती है। भारत की सभी मछलियों में कतला सबसे तेजी से बढ़ने वाली मछली है। एक वर्ष में यह ३८ — ४६ सेंटीमीटर बढ़ती है।

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