अख्तर, जावेद : (१७ जनवरी १९४५) – भारतीय हिंदी फिल्म उद्योग के प्रसिद्ध कहानी-पटकथा लेखक, गीतकार और कवि। हिंदी फिल्म उद्योग में सत्तर-अस्सी के दशक में जावेद अख्तर ने सलीम खान के साथ लिखी गई सफल कहानियों और पटकथाओं के कारण सलीम-जावेद की जोड़ी लोकप्रिय हो गई। जावेद अख्तर का जन्म ग्वालियर में हुआ। उनके पिता, जान निसार खान, भी हिंदी फिल्म उद्योग में गीतकार और कवि थे। जावेद की स्कूली शिक्षा लखनऊ में हुई और कॉलेज की पढ़ाई भोपाल के सोफिया कॉलेज में हुई।
शुरुआती समय में जावेद अख्तर कैफी आज़मी के सहायक के रूप में काम कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने एक फिल्म के लिए संवाद भी लिखे, लेकिन उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली। ‘सरहदी लुटेरा’ फिल्म के काम के दौरान उनकी मुलाकात सलीम खान से हुई। सलीम-जावेद की जोड़ी ने ‘अधिकार’ (१९७१) और ‘अंदाज’ के लिए पहली बार एक साथ कहानी-पटकथा और संवाद लिखे। सलीम खान कहानी लिखते थे और जावेद अख्तर उन्हें संवाद लेखन में मदद करते थे।
‘अंदाज’ और ‘अधिकार’ के बाद सलीम-जावेद ने ‘सीता और गीता’ (१९७२), ‘यादों की बारात’ (१९७३), ‘जंजीर’ (१९७३), ‘हाथ की सफाई’ (१९७४), ‘दीवार’ (१९७५), ‘शोले’ (१९७५), ‘चाचा भतीजा’ (१९७७), ‘डॉन’ (१९७८), ‘त्रिशूल’ (१९७८), ‘दोस्ताना’ (१९८०), ‘क्रांति’ (१९८१), ‘जमाना’ (१९८५), ‘मिस्टर इंडिया’ (१९८७) जैसी कुल २२ हिंदी और दो कन्नड़ फिल्मों की कहानी-पटकथा और संवाद लिखे। उनके द्वारा लिखी गई २४ फिल्मों में से आखरी दांव, इमान धरम, काला पत्थर और शान को छोड़कर बाकी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर बेहतरीन सफलता हासिल की।
सलीम-जावेद की जोड़ी ने ‘सिने पटकथाकार’ की भूमिका को एक विशेष दर्जा दिलाया। फिल्म के प्रचार पोस्टर पर कहानी-पटकथा लेखक और संवाद लेखक का नाम अनिवार्य रूप से लिखा जाता था। १९८२ के बाद, सलीम-जावेद की जोड़ी अलग हो गई। इसके बाद जावेद अख्तर कहानी-पटकथा लेखक और गीतकार के रूप में स्वतंत्र रूप से उभरे। उनकी स्वतंत्र लेखनी में ‘बेताब’ (१९८३), ‘मशाल’ (१९८४), ‘सागर’ (१९८५), ‘अर्जुन’ (१९८५), ‘मेरी जंग’ (१९८५), ‘डकैत’ (१९८७), ‘लक्ष्य’ (२००४) और ‘डॉन – द चेस बिगिन्स अगेन’ (२००६) जैसी फिल्में उल्लेखनीय हैं। उन्होंने ८० से अधिक फिल्मों के लिए गीत, कहानी-पटकथा और संवाद लिखे हैं।
गीतकार के रूप में जावेद अख्तर ने हिंदी फिल्म उद्योग में अपना अलग स्थान बनाया है। उन्होंने जनसामान्य के लिए सरल, सीधे और लयबद्ध गीत लिखे हैं, साथ ही अत्यंत संवेदनशील और अर्थपूर्ण गीत भी रचे हैं। ‘तुमको देखा तो ये खयाल आया’, ‘संदेसे आते हैं’, ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’, ‘पंछी, नदियाँ, पवन के झोंके’ जैसे गीतों के माध्यम से उन्होंने मानव मन की भावनाओं का सुंदर कोलाज प्रस्तुत किया है। ‘साज’ (१९९७), ‘बॉर्डर’ (१९९७), ‘गॉडमदर’ (१९९९), ‘रेफ्युजी’ (२०००) और ‘लगान’ (२००१) फिल्मों के गीतों के लिए जावेद अख्तर को पांच बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। उनके ‘तरकश’ और ‘लावा’ कविता संग्रह भी लोकप्रिय हुए हैं। ‘लावा’ कविता संग्रह को उर्दू साहित्य का ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला है।
जावेद अख्तर की पहली पत्नी का नाम हनी ईरानी है, जो खुद भी पटकथा लेखिका हैं। इनके दो बच्चे, फरहान और जोया हैं। फरहान अख्तर हिंदी फिल्म उद्योग के प्रसिद्ध निर्देशक, निर्माता और अभिनेता हैं, जबकि जोया अख्तर भी सफल फिल्म निर्माता और निर्देशक हैं। जावेद अख्तर ने हनी ईरानी से अलग होने के बाद, प्रसिद्ध अभिनेत्री शबाना आज़मी से विवाह किया। जावेद अख्तर ने अपने बेटे फरहान के साथ ‘दिल चाहता है’, ‘लक्ष्य’, ‘रॉक ऑन’ और बेटी जोया के साथ ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’ पर काम किया है।
भारत सरकार ने जावेद अख्तर को फिल्म उद्योग में उत्कृष्ट करियर के लिए १९९९ में ‘पद्मश्री’ और २००७ में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया है। जावेद अख्तर ने अपने करियर में बेहतरीन गीत, संवाद और कहानियों के लिए कई फिल्मफेयर पुरस्कार भी जीते हैं।
बुद्धिवाद का समर्थन करने वाले और पारंपरिक, अंधविश्वासी विचारधारा का विरोध करने वाले जावेद अख्तर ने अपने सार्वजनिक बयानों और साहित्यिक कृतियों के माध्यम से धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकार जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों का निर्भीकता से समर्थन किया है। २०२० में ‘रिचर्ड डॉकिन्स’ पुरस्कार से उनकी इस भूमिका का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान किया गया है। कलात्मकता को बनाए रखते हुए व्यावसायिकता का संतुलन साधने वाले और भारतीय समाज की विविधता को पसंद करने वाले इस अद्वितीय कलाकार को भारतीय फिल्म उद्योग में सम्मानित स्थान प्राप्त है।