बहावलपुर रियासत: ब्रिटिश भारत (वर्तमान पश्चिमी पाकिस्तान) की एक रियासत थी। इसका क्षेत्रफल 42,554 वर्ग किलोमीटर था और 1941 में इसकी जनसंख्या लगभग दस लाख थी। वार्षिक आय 35.5 लाख थी। पंजाब प्रांत में स्थित इस रियासत में 10 शहर और 1,008 गाँव थे। इसके उत्तर-पूर्व में फिरोजपुर जिला, उत्तर-पश्चिम में सतलज नदी, दक्षिण-पूर्व में जैसलमेर और बीकानेर की रियासतें थीं। इसकी उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम लंबाई लगभग 490 किलोमीटर और औसत चौड़ाई 70 किलोमीटर थी।
सिंध के अब्बासी दाऊदपोतों में से नवाब पहले मुहम्मद बहावल खान ने काबुल की अस्थिर राजनीति का फायदा उठाकर अठारहवीं सदी में इस क्षेत्र में राज्य स्थापित किया (1748)। दूसरे मुहम्मद बहावल खान ने टकसाल का परमिट प्राप्त किया (1802)। बहावलपुर के नवाब खुद को मिस्र के अब्बासी खलीफाओं का वंशज मानते थे। रणजीत सिंह के उदय के बाद उन्होंने ब्रिटिशों से मदद की कोशिश की, लेकिन इसका ज्यादा फायदा नहीं हुआ। सिंधु नदी पर यातायात और पहले अफगान युद्ध (1838-42) में सहायता के लिए अंग्रेजों ने रियासत के साथ मैत्री संधियाँ कीं (1833 और 1838)। सिख युद्ध (1845-50) में सहायता के बदले नवाब को सब्जलकोट और भुंग जिले और एक लाख का वार्षिक भत्ता मिला। गद्दी विवाद में अंग्रेजों ने हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन नवाब अल्पवयस्क होने के कारण 1866-79 के बीच उन्होंने रियासत का प्रशासन देखा।
नवाब पाँचवें अहमद बहावल खान की मृत्यु के बाद (1907) हाजी सादिक मुहम्मद खान, अल्पवयस्क नवाब गद्दी पर आए। रियासत की अपनी तांबे की टकसाल और सेना थी। रियासत ने दूसरे अफगान युद्ध (1875-79) और प्रथम विश्व युद्ध (1914-19) में अंग्रेजों को सक्रिय सहायता प्रदान की। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में रेलवे, डाक, नहरें, पक्की सड़कें, चावल मिलें, सूत की मिलें, नगरपालिका, स्वास्थ्य और शिक्षा में रियासत की कुछ प्रगति हुई। रियासत में काहिरा के प्राचीन अल-अज़हर विश्वविद्यालय की तर्ज पर अब्बासिया नामक संस्था थी, जो सादिक एगरटन कॉलेज के साथ मिलकर शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी थी।
नवाब शासन का प्रमुख था और 11 सदस्यीय मंडल प्रशासन में उसकी मदद करता था। मंडल का अध्यक्ष मुशीर-ए-आला या वज़ीर होता था और अन्य सदस्य विदेश मंत्री, राजस्व मंत्री, मुख्य न्यायाधीश और सेना के प्रमुख होते थे। प्रशासन की सुविधा के लिए रियासत को तीन निज़ामत (विभाग) में विभाजित किया गया था। प्रत्येक निज़ामत को फिर तीन तहसीलों में विभाजित किया गया था। निज़ामत का प्रमुख नाज़िम होता था और तहसील पर तहसीलदार और नायब तहसीलदार होते थे। मुशीर-ए-माल के अधीन वित्त विभाग था और उसके अधीन सभी अधिकारी कार्यरत थे। वार्षिक वर्षा मात्र 13 सेमी होने के कारण रियासत का आधे से अधिक क्षेत्र रेगिस्तानी था। 83% मुस्लिम जनसंख्या वाली यह रियासत 1947 में पाकिस्तान में शामिल हो गई।
संदर्भ: अली, शाहमात, हिस्ट्री ऑफ बहावलपुर, बहावलपुर, 1848।