मोरवी रियासत

इतिहास

मोरवी रियासत : ब्रिटिश-शासित भारत के सौराष्ट्र में स्थित एक रियासत थी। इसका क्षेत्रफल 2,104.32 वर्ग किमी था और जनसंख्या लगभग 1,41,817 थी। इसका वार्षिक राजस्व लगभग 56 लाख था। इस रियासत में 154 गांव थे। कच्छ के महाराजों में से एक, कायराजी ने 1720 में मच्छू नदी के किनारे एक अलग रियासत की स्थापना की। यह क्षेत्र एकसार नहीं था, कच्छ में रियासत का जंगी बंदरगाह और अधोनी तालुका था। इस पर उन्नीसवीं सदी के अंत तक कच्छ के साथ विवाद चलता रहा। कायराजी की मृत्यु के बाद (1734) उसका पुत्र तेजमलजी अल्पकाल के लिए गद्दी पर बैठा। उसने ववानिया नामक एक उत्तम बंदरगाह बसाया। 1807 में रियासत ब्रिटिश संरक्षित हो गई। तेजमलजी के उत्तराधिकारी पृथ्वीराजजी (1829–46) ने कर्ज चुकाया, जबकि रावजी (1846–70) ने आधुनिक शासन की नींव रखी। ठाकुर दूसरे वाघजी (1889–1922) के शासन में आने तक ब्रिटिश शासन था। उसी समय में सौराष्ट्र की रियासतों में इसे पहली श्रेणी मिली (1887)। बीसवीं सदी में रेल, पक्की सड़कें, ट्राम, शिक्षा, स्वास्थ्य, नगरपालिका, कपास मिलें, महाराष्ट्रीय व्यापारी गणपुले का परशुराम पॉटरी वर्क्स इत्यादि अनेक क्षेत्रों में प्रगति हुई, लेकिन दूसरे वाघजी का शासन अत्याचारी था, ऐसी अखबारों में आलोचना होती थी। श्रीलुखंधीरजी बहादुर 1922 में गद्दी पर आए। रियासत का नवलाखी बंदरगाह विदेशी व्यापार के लिए उपयोग में था। मोरवी में व्यवसायिक शिक्षा देने वाला विद्यालय था और रियासत में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मुफ्त थी। रियासत में 250 पुलिसकर्मी थे, लेकिन कोई सेना नहीं थी। अंग्रेजों को 9,263 रुपये और बड़ौदा रियासत को 49,208 रुपये वार्षिक कर देना पड़ता था। 1948 में यह रियासत सौराष्ट्र संघ में विलीन हो गई।

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