रथसप्तमी : विख्यात माघस्नान व्रत

धर्म

रथसप्तमी: माघ शु. सप्तमी को मनाया जाने वाला हिंदुओं का एक सौर व्रत है। यह सप्तमी चौदह मन्वंतरों में से एक मन्वंतर की प्रारंभतिथि के रूप में महत्वपूर्ण मानी जाती है। साथ ही, मन्वंतर की शुरुआत में इसी तिथि को सूर्य को रथ प्राप्त होने के कारण इसे रथसप्तमी कहा जाता है, ऐसी मान्यता है। रथ का मतलब रथस्थ सूर्य से है, ऐसा यहां माना जा सकता है। क्योंकि रथ शब्द का मतलब ‘वीर’ या ‘योद्धा’ भी होता है।

सूर्योपासना में रथ की संज्ञा का महत्वपूर्ण स्थान है, इतना तो निश्चित है। रथस्थ सूर्य की तस्वीर बनाना, रथ की पूजा और दान करना आदि व्रताचरणों से यह स्पष्ट होता है। दक्षिणायन में रथहीन हुआ सूर्य उत्तरायण में रथस्थ होता है, ऐसी मान्यता है। इसके अलावा, सूर्यबिंब का रथचक्र से समानता होने के कारण सूर्य का रथ एकचाकी होने की पुराणकथा बनी है। इस पुराणकथा से सूर्य और रथ की तादात्म्य सूचित होती है। साथ ही, रथ या रथ का चक्र सूर्य का प्रतीक होने का भी संकेत मिलता है। रथसप्तमी के भानुसप्तमी, भास्करसप्तमी, रथांकसप्तमी और रथांगसप्तमी जैसे नाम इसी का प्रमाण हैं।

भारत में सर्वत्र इस व्रत के निमित्त सूर्योपासना की जाती है, लेकिन विभिन्न प्रांतों में व्रत का नाम और व्रताचरण का विवरण भिन्न होता है। अचला, जयंती, माकरी, माघ, महा आदि नामों से यह सप्तमी जानी जाती है। यह रविवार को आए तो विजया और उस तिथि को सूर्य का संक्रमण हो तो महाजया कही जाती है।

मुख्यतः महिलाएं यह व्रत करती हैं। षष्ठी को एकभुक्त रहकर व्रत का संकल्प करना, सप्तमी को अरुणोदय के समय स्नान कर आंगन में बनाए गए सूर्य प्रतिमा की पूजा करना, आंगन में ही पकाए गए दूध की खीर का सूर्य को नैवेद्य अर्पण करना और आंगन में ही सूर्य के लिए दूध उबालने देना यह व्रत का मुख्य रूप होता है। हल्दी-कुंकू और वायन का वितरण भी किया जाता है। दक्षिण में उस दिन अनध्याय होता है और रात में गायन, वादन, दीपोत्सव आदि कार्यक्रम होते हैं।

वर्षभर सूर्योपासना का व्रत कर अंत में रथ का दान करने पर महासप्तमी, माथे पर बोर और रुई के प्रत्येक सात पत्ते धारण कर उपासना करने पर माघसप्तमी, माथे पर दीप धारण कर उपासना करने पर अचलासप्तमी आदि प्रकार के व्रतभेद बताए जाते हैं। इस दिन का स्नान ही विख्यात माघस्नान माना जाता है, ऐसा कुछ लोगों का मत है। सभी रोगों और पापों से मुक्ति और सौभाग्य, पुत्र, धन आदि की प्राप्ति इस व्रत का फल बताया जाता है। कंबोज के यशोधर्म राजा ने यह व्रत करने से उसके पुत्र का रोग मुक्त होने की कथा प्रसिद्ध है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *