राजपीपला राज्य

इतिहास

राजपीपला राज्य: गुजरात राज्य का एक पुराना ब्रिटिशकालीन राज्य। यह भड़ौच जिले में स्थित है। राज्य का दो-तिहाई हिस्सा सातपुड़ा पर्वतमाला की राजपीपला पहाड़ियों से घिरा हुआ है। क्षेत्रफल ३,८८३.५२ वर्ग किमी, जनसंख्या दो लाख (१९४१), और वार्षिक आय २५ लाख थी। उत्तर-पूर्व में नर्मदा नदी और रेवा-कांठा पॉलिटिकल एजेंसी डिवीजन, खानदेश जिले की मेहवासी जागीरें, दक्षिण-पश्चिम में बड़ौदा राज्य और सूरत-भड़ौच जिले से इसकी सीमाएँ थीं। राज्य की राजधानी नांदोड थी और राज्य में ६५१ गांव थे। गोहिल राजपूतों में से गामेर (गेमरा) सिंहजी ने १४७० के आसपास गुजरात के सुल्तानों को ३०० घुड़सवार और १,००० पैदल सैनिक प्रदान करने का वचन देकर इस क्षेत्र में एक स्वायत्त राज्य स्थापित किया। अकबर द्वारा गुजरात पर विजय प्राप्त करने के बाद ३५,५५० रुपये कर लगाया गया। अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत में मुगल सत्ता के कमजोर होने पर राज्यों ने कर देने से इंकार करना शुरू कर दिया। इस शताब्दी के पूर्वार्ध में ही दमाजी गायकवाड़ ने राज्य के ४ परगनों के आधे राजस्व पर अधिकार जमा लिया। उत्तरार्ध में गायकवाड़ ने इन परगनों पर कब्जा कर लिया और इसके बदले राज्य को ९२,००० रुपये देना तय किया। पेशवाओं के पतन के बाद राज्य लगभग ब्रिटिशों के अधीन हो गया। १८२१ में वैरिसालजी अंग्रेजों की मदद से गद्दी पर बैठे। अंग्रेजों ने १८२३ में राज्य को बड़ौदा को पचास हजार रुपये कर देने का निर्णय दिया। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में कुछ समय के लिए राज्य का सीधा प्रशासन भी अंग्रेजों के हाथ में था। राज्य के शासक को महाराणा कहा जाता था। १८९९ में नांदोड से अंकलेश्वर तक रेलवे बना। राज्य को कपास से अच्छी आय होती थी। बीसवीं शताब्दी में शिक्षा, स्वास्थ्य, नगरपालिका, और पशु चिकित्सालय जैसे कुछ क्षेत्रों में थोड़ी बहुत सुधार हुई। महाराणा को न्याय देने के पूर्ण अधिकार थे। १९४८ में राज्य को तत्कालीन मुंबई राज्य में और बाद में १ मई १९६० से गुजरात राज्य में शामिल किया गया।

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