लव कुश

लव कुश : रामायण के महान पूत्र

धर्म

रामायण, भारतीय संस्कृति और साहित्य का एक महाकाव्य है, जो आदर्श जीवन और मानवीय मूल्यों का चित्रण करता है। इस महाकाव्य के प्रमुख पात्रों में से लव कुश, भगवान राम और सीता के जुड़वां पुत्र, विशेष महत्व रखते हैं। उनकी कहानी न केवल उनके वीरता और धैर्य को दर्शाती है, बल्कि परिवार, न्याय और धर्म के प्रति उनके अटूट निष्ठा को भी उजागर करती है।

लव कुश : प्रारंभिक जीवन

कुश और लव का जन्म वाल्मीकि के आश्रम में हुआ था। लोकापवाद के भय से, राम ने सीता का त्याग करने का निर्णय किया। लक्ष्मण ने सीता को तमसा नदी के किनारे वाल्मीकि आश्रम के पास छोड़ दिया। यह समाचार वाल्मीकि के शिष्यों द्वारा वाल्मीकि को ज्ञात हुआ। तब वाल्मीकि ने मुनि पत्नियों के पास सीता की रहने की व्यवस्था कर दी। बाद में, आश्विन मास की आधी रात के समय सीता ने दो पुत्रों को जन्म दिया। धर्म और युवाकुरों से इनके शरीर पर पानी सींचा गया, इस लिए इनके नाम कुश और लव रखे गए ।

जिस दिन लव और कुश का जन्म हुआ, उस दिन लवणासुर का पराभव करने के लिए जाता हुआ शत्रुघ्न वाल्मीकि के आश्रम में था। यह समाचार जानकर उसे अत्यंत आनंद हुआ। पद्मपुराण में लिखा गया है कि लवणासुर का पराभव कर शत्रुघ्न जब वापस जा रहा था, तब वह आश्रम में आया था, परंतु सीता आश्रम में पवित्र हो गई है, यह समाचार वाल्मीकि ने उसे नहीं बताया । वाल्मीकि ने कुश और लव का पालन-पोषण का जिम्मा उठाया।

लव कुश : शिक्षा और प्रशिक्षण

वाल्मीकि ने उनके जातकर्म आदि संस्कार किए। वेद और युद्धकला में दृढ़ीकरण के लिए उन्हें रामायण सिखाई। धनुर्विद्या और क्षात्रविद्या में भी उन्हें निष्णात किया। उन्होंने रामायण का पाठ कराया और उसे गाने का अभ्यास कराया। कुश और लव ने अपने गुरु की हर शिक्षा को आत्मसात किया और महान योद्धा तथा विद्वान बने। उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण ने उन्हें न केवल शास्त्रार्थ में निपुण बनाया, बल्कि उन्हें उच्च नैतिकता और आदर्शों का पालन करना भी सिखाया।

लव कुश : अश्वमेध यज्ञ

जब राम ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया, तो एक अश्व को छोड़ा गया । कुश और लव ने उस अश्व को पकड़ा, जिससे उनका क्षत्रियत्व जागृत हुआ। जब शत्रुघ्न और अन्य राजकुमार अश्व को वापस लेने आए, तो कुश और लव ने वीरता के साथ उनका मुकाबला किया और उन्हें परास्त किया। उस अश्व के मस्तक पर लिखे हुए लेख ने उनका क्षत्रियत्व जागृत किया। उस लेख में लिखा था: “एकवीराय कौसल्या सुताय रामः। तेन रामेण मुक्तोऽसि बाजी गृहाण।” यह देखकर लव ने कहा, “क्या हमारी माँ बंध्या है, क्या वह एकवीरा नहीं है?”

मुनिकुमारों द्वारा निवारण किए जाने पर भी लव ने उनकी एक न सुनी। उसने कहा, “सीता का पुत्र होकर भी, यदि मैंने तुम्हारे जैसा ही व्यवहार किया, तो मैं एक कृमी सिद्ध हो जाऊंगा।” अश्व रक्षा के लिए शत्रुघ्न नियुक्त था। उसने सबको मूर्छित किया, तब कुश ने आकर शत्रुघ्न को मूर्छित किया। बाद में लक्ष्मण अपनी सेना सहित आया। लव ने जरा होकर, सूर्य से नया धनुष प्राप्त किया। लक्ष्मण, भरत और हनुमान का भी लव ने पराभव किया। तब राम को मजबूरी से रणांगण पर आना पड़ा।

विभीषण और सुग्रीव को लेकर राम रणांगण पर आया। दोनों कुमारों को देखते ही उसने पूछा, “तुमने धनुर्विद्या किससे सीखी?, तुम्हारे माता-पिता कौन हैं?” अंत में राम ने कहा कि, “जब तक तुम अपना कुल नहीं बताते, तब तक मैं युद्ध नहीं करूंगा।” तब उन्होंने कहा, “हम सीता के पुत्र हैं।” यह सुनते ही राम के हाथ से धनुष गिर पड़ा। सुग्रीव आदि ने बहुत प्रयत्न किए, फिर भी सबका बचकर और राम को भी मूर्छित कर, दोनों चल पड़े। वे हनुमान को सीता के मनोरंजन के लिए साथ लाए थे। परंतु सीता ने उसे वापस भेजने के लिए कहा। इस घटना ने उनकी युद्ध कौशल और शौर्य को प्रदर्शित किया।

लव कुश राम के साथ पुनर्मिलन

अश्वमेध यज्ञ के दौरान, कुश और लव की राम से भेंट हुई। वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि, कुश और लव तथा राम की भेंट रामायण गान के कारण हुई। जब राम ने अश्वमेध किया, तब अनेक कलाकार एकत्र हुए थे। वाल्मीकि को भी बड़े सम्मान से निमंत्रण मिला था। उनके साथ ये दोनों भी अयोध्या गए। वहाँ वाल्मीकि द्वारा सिखाया गया रामायण महाकाव्य ताल और सुर के साथ गाना उन्होंने प्रारंभ किया।

ऋषियों के पवित्र स्थान, ब्राह्मणों के निवासस्थान, उपमार्ग, राजमार्ग, राजाओं के निवासस्थान, राम का निवासस्थान, और जहाँ ऋत्विजों के अनुष्ठान हो रहे थे, वहाँ रामायण गाने का क्रम उन्होंने जारी रखा। यह क्रम कभी भी बिगाड़ते नहीं थे। रोज वे बीस सर्गों का गायन करते थे। उन्हें वाल्मीकि की आज्ञा थी कि, धन की अपेक्षा न की जाए।

अगर कोई धन देने की कोशिश करे, तो वे कहते थे, “हम मुनिकुमारों को धन की क्या आवश्यकता है?” यदि कोई पूछे कि, “तुम किसके पुत्र हो?” तो वे कहते थे, “हम वाल्मीकि के शिष्य हैं।” परंतु रामायण श्रवण से राम को पता चला कि, कुश और लव उसी के पुत्र हैं ।राम को यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ कि वे उनके ही पुत्र हैं। इसके बाद, वाल्मीकि ने राम से कहा कि वे सीता और अपने पुत्रों को स्वीकार करें। राम ने कुश और लव को गले लगाया और उनका स्वागत किया।

राज्याभिषेक और आगे का जीवन

राम ने कोसल देश का राज्याभिषेक लव को किया और उत्तर कोसल का राज्याभिषेक कुश को किया। उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया और अपने-अपने राज्यों में न्याय और धर्म का पालन किया। लव की दो पत्नियाँ सुमति और कंजानना थीं, जबकि कुश की पत्नी चंपका थी। उनके शासनकाल में उनके राज्य प्रगति और समृद्धि की ओर बढ़े।

लव कुश की महत्ता

लव कुश आरती

जय लव कुश देवा, जय लव कुश देवा
आरती भगत उतारें, संत करें सेवा
श्रावण मास की पूनम, लव कुश जनम लिये
सकल देव हर्षाये , ऋषि मुनि धन्य किये
वाल्मीकि जी के मढ़ में, बचपन बीत गया

अस्त्र शस्त्र की शिक्षा, चित आनंद भया

अपने प्रिय गुरुजन की, आज्ञा सिरो धाई

मात सिया चरणों में, सुत प्रीति पाई

विजयी विश्व का परचम, अवध में लहराया

अश्व मेघ का घोड़ा, लव कुश मन भाया
बीर बली बंधन में, लक्ष्मण जान गए

पिता पुत्र फिर रण में, सन्मुख आन भये
दुखी जनो के प्रभुजी, दुर्गुण चित्त धरो

शरणागत जो आवे, ताकि विपति हरो
लुव कुश देव की आरती, जो कोई जन गावे

पदम्  कहत वह  प्राणी, सुख संपत्ति पावे

कुश और लव की कहानी महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों में एक विशेष स्थान रखती है। उनकी कहानी हमें कई महत्वपूर्ण जीवन मूल्य सिखाती है। पहला, वे अपने माता-पिता के प्रति अटूट निष्ठा और सम्मान के प्रतीक हैं। जब वे वाल्मीकि के आश्रम में थे, तो उन्होंने कभी भी अपने माता-पिता की पहचान के बारे में कोई सवाल नहीं उठाया और वाल्मीकि को ही अपना गुरु और मार्गदर्शक माना। दूसरा, वे वीरता और साहस के प्रतीक हैं। उन्होंने अपने युग के महान योद्धाओं को परास्त किया और अपने कौशल का प्रदर्शन किया। तीसरा, वे न्याय और धर्म के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक हैं। उन्होंने अपने राज्य में न्याय और धर्म का पालन किया और अपने प्रजा के कल्याण के लिए कार्य किया।

लव कुश : साहित्य और संस्कृति में योगदान

लव कुश की कहानी न केवल महाकाव्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि भारतीय साहित्य और संस्कृति में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है। उनके जीवन की घटनाएँ, उनके साहस और उनकी निष्ठा का वर्णन अनेक साहित्यिक कृतियों में मिलता है। रामायण में उनके द्वारा गाए गए रामायण के सर्ग आज भी भारतीय साहित्य और संगीत में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। वे भारतीय लोककथाओं और परंपराओं का हिस्सा हैं और उनके द्वारा प्रस्तुत आदर्श और मूल्य आज भी प्रासंगिक हैं।

कुश और लव की कहानी महाभारत और रामायण के अन्य पात्रों की तरह महत्वपूर्ण है। उनकी वीरता, निष्ठा और न्यायप्रियता हमें यह सिखाती है कि जीवन में उच्च आदर्शों और मूल्यों का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है। उनकी कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि पारिवारिक निष्ठा और सम्मान का मूल्य हमेशा सर्वोपरि होता है। भारतीय संस्कृति और साहित्य में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। वे सच्चे नायकों के रूप में हमेशा हमारे दिलों में बसते रहेंगे।

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