वेल्लोर (तमिलनाडू राज्य) जिले के वेल्लोर किले में 1806 में हुआ भारतीय सिपाहियों का विद्रोह। इस विद्रोह की तात्कालिक वजहें धार्मिक थीं।
वेल्लोर बंड के सिपाहियों का स्मारक, वेल्लोर (तमिलनाडू)। मद्रास सेना के प्रमुख सर जॉन क्रैडॉक ने कुछ विवादास्पद आदेश सिपाहियों को दिए। उदाहरण के लिए, सिपाहियों को दाढ़ी-मूंछ रखने की अनुमति नहीं थी, ताज बांधने की मनाही थी और धार्मिक रिवाज के रूप में माथे पर तिलक लगाने की इजाजत नहीं थी। उस समय किले में ब्रिटिशों की 69वीं पलटन के 280 सिपाही और कुछ अधिकारी तैनात थे। उन्होंने तत्काल वहां के लगभग 1,500 सिपाहियों पर ये पाबंदियाँ लागू कीं। इससे सिपाहियों को लगा कि उनके धर्म को खतरा हो सकता है। इसी बीच, टीपू सुलतान के बेटों और रिश्तेदारों ने सिपाहियों को उकसाया। 10 जुलाई 1806 को भारतीय सैन्य अधिकारियों ने एक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या कर दी और ब्रिटिश सिपाहियों को उनके निवास स्थान पर ही बंदी बना लिया। विद्रोहियों ने 82 ब्रिटिश सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। बंदी बनाए गए ब्रिटिश सिपाहियों ने जोन्स और डीन नामक दो युवा सर्जनों के नेतृत्व में किले की दीवारों पर चढ़कर भागने की कोशिश की। उनमें से कई को पकड़कर मार दिया गया। इस बीच, किले के बाहर रह रहे एक अधिकारी ने यह दृश्य देखा और तुरंत घोड़े पर सवार होकर 22 किलोमीटर दूर रानीपेट केंटोनमेंट पहुंचा। वहां कर्नल गिलेस्पी मौजूद थे। उन्होंने घुड़सवार सेना और एक बड़ी पलटन के साथ किले की ओर प्रस्थान किया। कर्नल गिलेस्पी ने किले की दीवारों से अंदर प्रवेश किया और सभी विद्रोहियों पर गोलीबारी की, जिससे विद्रोह को कुचला जा सका। इस संघर्ष में लगभग 350 भारतीय सिपाही मारे गए। 19 सिपाहियों को सजा के तौर पर मौत के घाट उतारा गया। कुल मिलाकर इस विद्रोह में दोनों पक्षों को मिलाकर लगभग 500 लोग मारे गए। किले के प्रवेशद्वार के पास अंदर की ओर एक दफनभूमि है और मृत सिपाहियों की याद में वहां एक स्मारक शिला स्थापित की गई है।
संदर्भ: Fass, Virginia, The Forts of India, Allahabad, 1986.