संबलपुर रियासत

इतिहास

संबलपुर रियासत : ब्रिटिशकालीन भारत की एक पुरानी रियासत थी। उड़ीसा राज्य की इस भूतपूर्व रियासत का इतिहास ब्रिटिशों के आने से पहले का है। “कोसलानंद काव्य”, “जयचंद्रिका” (प्रल्हाद दुबे) और “चिकित्सा मंजरी” जैसी किताबों में संबलपुर के बारे में विश्वसनीय जानकारी मिलती है। सोलहवीं शताब्दी में महानदी के किनारे बलरामदेव ने स्वतंत्र गद्दी स्थापित की थी। समलाई देवी के नाम पर इस जगह को संबलपुर कहा गया। बलरामदेव एक पराक्रमी और कार्यक्षम शासक था। बलरामदेव की मृत्यु के बाद हृदयनारायण (कार्यकाल 1600-05), उसका पुत्र बलभद्रदेव (कार्यकाल 1605-30), उसके बाद मधुकरदेव (कार्यकाल 1630-60) और बलियरसिंह (कार्यकाल 1660-90) ने राज्य संभाला। बलियरसिंह संबलपुर के इतिहास के सबसे कर्तृत्ववान, कला प्रेमी, उदार और कार्यक्षम राजा माने जाते हैं। उनके दरबार में कवि पंडित गंगाधर मिश्र थे जिन्होंने “कोसलानंद काव्य” लिखा। उनके बाद छत्रसाई (कार्यकाल 1690-1725) गद्दी पर आए। छत्रसाई के राजवैद्य गोपीनाथ सारंगी ने “चिकित्सा मंजरी” नामक आयुर्वेद पर आधारित ग्रंथ संस्कृत और ओड़िया दोनों भाषाओं में लिखा। इसमें बताया गया कि राज्य में 18 किले और 13 दंडपट्ट थे और राज्य की जनसंख्या 20,000 थी।

अजीतसिंह के शासनकाल (1725-66) में रियासत में अराजकता फैल गई। रॉबर्ट क्लाइव ने संबलपुर का दौरा किया और यहां व्यापार के असफल प्रयास किए। उसके बाद अभयसिंह के शासनकाल (1766-78) में अकबर राय नामक एक बलशाली दीवान ने अभयसिंह को कैद कर लिया, जहाँ उनकी मृत्यु हो गई। अकबर राय ने पद्मपुर के चौहान वंश के बलभद्रसाई नामक लड़के को संबलपुर की गद्दी पर बिठाया। तब अभयसिंह का छोटा भाई जयंतसिंह गढ़मंडला, छत्तीसगढ़ आदि से सहायता लेकर संबलपुर पर आक्रमण किया। उसने अकबर राय और बलभद्र को पकड़कर मार डाला और खुद को राजा घोषित किया (1781)। लेकिन नागपुर के भोसलों के हमलों के कारण जयंतसिंह को 32,000 रुपए वार्षिक कर देने को मजबूर होना पड़ा। इससे संतुष्ट न होकर भोसलों ने संबलपुर पर कब्जा कर लिया और राजा को चंद्रपुर (चांदा) के जेल में डाल दिया (1800) और अपने सेनापति भूपसिंह को राज्यपाल नियुक्त किया। करीब नौ साल तक भोसलों का संबलपुर पर शासन रहा। जब भूपसिंह बलशाली हो गया तो रघुजी ने उसके खिलाफ सेना भेजी। वह भागकर अंग्रेजों के पास गया। भूपसिंह की जगह तात्या फडणिस को राज्यपाल बनाया गया। बाद में ब्रिटिशों ने भूपसिंह के सहयोग से संबलपुर पर कब्जा कर लिया (1804)। संबलपुर की रानी और सामंतों ने ब्रिटिश सत्ता को स्वीकार किया, तब जयंतसिंह फिर से गद्दी पर आए। जयंतसिंह की मृत्यु के बाद (1818) उनका पुत्र महाराजसाई गद्दी पर बैठा (1820), लेकिन ब्रिटिशों ने उसके अधिकार सीमित कर दिए। उसके बाद (1827) ब्रिटिशों ने मोहन कुमारी नामक विधवा रानी को (कार्यकाल 1827-33) वारिस की परंपरागत नियमों और स्थानीय प्रथाओं को नजरअंदाज करते हुए संबलपुर की गद्दी पर बिठाया। इस कारण गोंड और बंजाहल जमींदारों ने विद्रोह कर दिया। अंततः ब्रिटिशों ने उसे हटा दिया और चौहान वंश के नारायणसिंह को गद्दी पर बिठाया। नारायणसिंह की मृत्यु के बाद कोई अधिकारिक वारिस न होने के कारण 1849 में इस रियासत को खालसा कर दिया गया।

संदर्भ:

  1. दास, शिव प्रसाद, “हिस्ट्री ऑफ संबलपुर”, कटक, 1963।
  2. सेनापति, नीलमणि, एड. “उड़ीसा डिस्ट्रिक्ट गजेटियर्स: संबलपुर”, कटक, 1971।

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