स्व-संमोहन

स्व-संमोहन (self-hypnosis)

मनोविज्ञान

स्व-संमोहन अभिसंधान (conditioning) प्रक्रिया

आई. पी. पावलोव ने घंटी की आवाज़ के साथ कुत्ते के मुँह से लार टपकने की प्रक्रिया पर अध्ययन किया था। वास्तव में भोजन को देखकर कुत्ते के मुँह से लार टपकना एक प्राकृतिक शारीरिक प्रतिक्रिया है। उन्होंने घंटी की आवाज़ के साथ लार टपकने की क्रिया को अभिसंधान प्रयोग के माध्यम से जोड़ा। इसी तरह व्यक्ति स्वयं को स्व-संमोहित करने के लिए अपने आप को निर्देश देता है। जैसे, एक शांत और आरामदायक वातावरण में आराम-कुर्सी या बिस्तर पर लेटकर ध्यान केंद्रित करते हुए मन में यह निर्देश देता है कि ‘मैं एक-दो-तीन… दस तक गिनूँगा और क्रमशः मुझे शांति के साथ सुखद नींद आने लगेगी।’ धीरे-धीरे व्यक्ति अर्धचेतन अवस्था का अनुभव करता है।

शरीर और मन बाहरी वातावरण के सभी उत्तेजनाओं से मुक्त होकर शिथिल हो जाता है और शांति का अनुभव करता है। इस दौरान जो भी समस्याएँ होती हैं, उनके लिए सकारात्मक निर्देश दिए जाते हैं। जैसे, ‘दिन प्रतिदिन और हर तरीके से मेरी सेहत सुधरती जा रही है,’ ऐसा स्व-संमोहन का सूत्र एमिली कूए ने दिया है। अंत में व्यक्ति खुद को निर्देश देता है कि ‘मैं दस से उलटी गिनती गिनूँगा… दस, नौ, आठ, सात… एक, और मेरी आँखें खुल जाएँगी। आँखें खुलते ही मैं स्फूर्ति, ताजगी और आनंद का अनुभव करूँगा।’ इस प्रकार स्व-संमोहन एक ऐसी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति खुद को निर्देश देता है और इस प्रकार अपनी समस्या का समाधान करता है। अंततः हर सम्मोहन की प्रक्रिया में स्व-संमोहन भी शामिल हो जाता है।

स्व–संमोहन करने की विधि

शांत और आरामदायक स्थिति में आराम-कुर्सी पर बैठें या सीधे लेट जाएँ, धीरे-धीरे और गहरी सांस लें, शरीर को शिथिल बनाते जाएँ, ध्यान केंद्रित करें, मन में शांति का अनुभव होगा तथा नींद आएगी, इस तरह के सकारात्मक निर्देश बार-बार देते रहें। इन्हीं निर्देशों को कम से कम पाँच बार मन में दोहराएँ। निर्देश एक के बाद एक, छोटे और सार्थक होने चाहिए। समस्या के समाधान के लिए हमेशा सकारात्मक निर्देश देने चाहिए।

किस प्रकार के मनोवैज्ञानिक निर्देश देने चाहिए, यह तय करने के लिए मनोवैज्ञानिक की सलाह अनिवार्यतः लें। स्वयं निर्धारित किए गए निर्देश न दें। लगभग 15 मिनट के बाद ‘मैं पूरी तरह स्वस्थ और जागृत हो रहा हूँ,’ ‘जागृत होने के बाद आनंद, स्फूर्ति और ताजगी का अनुभव करूँगा।’ इस तरह के निर्देश दें। इस प्रकार इस प्रक्रिया को समाप्त करें।

उपरोक्त प्रक्रिया संक्षेप में दी गई है। अधिक विवरण के लिए मनोवैज्ञानिक और सम्मोहन विशेषज्ञ की सलाह लें। इतना ही नहीं, बल्कि यदि एक-दो बार मनोवैज्ञानिक से सम्मोहन करवाकर व्यक्ति खुद को सम्मोहित करने के निर्देश अर्धचेतन अवस्था में लेता है, तो उसे अधिक लाभ हो सकता है और स्व-संमोहन में आसानी रहती है। प्रतिदिन या सप्ताह में दो-तीन बार अभ्यास करने से इस प्रक्रिया को सीखा जा सकता है।

संपूर्ण प्रक्रिया बहुत सरल और स्वाभाविक रूप से हो सकती है। व्यक्ति के भिन्नता के कारण, प्रत्येक व्यक्ति की स्व-संमोहन की स्थिति अलग-अलग हो सकती है; लेकिन जैसे-जैसे प्रयास किया जाता है, वैसे-वैसे सम्मोहन की गहरी अवस्था (deep trance) प्राप्त की जा सकती है।

स्व–संमोहन के उपयोग

(1) आत्म-विकास (self-development) के लिए, (2) एकाग्रता (concentration) बढ़ाने के लिए, (3) आत्मविश्वास (self-confidence) बढ़ाने के लिए, (4) संकल्प शक्ति (will-power) बढ़ाने के लिए, (5) निर्णय क्षमता (decision-making) बढ़ाने के लिए, (6) याददाश्त (memory improvement) बढ़ाने के लिए, (7) निरर्थक भय (eliminating phobia) को दूर करने के लिए, (8) अनावश्यक चिंता (anxiety-reduction) को दूर करने के लिए, (9) निराशा और अवसाद (being free from frustration & depression) से मुक्ति पाने के लिए, (10) रोज़मर्रा के मानसिक तनाव (stress) को दूर करने के लिए, (11) लक्ष्य-उन्मुख व्यवहार (goal-oriented behaviour) को विकसित करने के लिए, (12) अनिद्रा (getting rid of insomnia) को दूर करने के लिए और (13) शारीरिक और मानसिक शांति और स्वास्थ्य के लिए।

स्व-संमोहन के विशिष्ट उपयोग 

आधुनिक समय में कैंसर से पीड़ित व्यक्ति को यदि यह विधि सिखाई जाए, तो उसके दर्द के अनुभव को नियंत्रित किया जा सकता है।

किडनी ट्रांसप्लांट से पहले, रोगी को स्व-संमोहन द्वारा सकारात्मक निर्देश देकर मानसिक रूप से तैयार किया जाता है, जिससे ट्रांसप्लांट की गई किडनी की विफलता को कम किया जा सकता है। उसका आत्मविश्वास बढ़ाया जाता है।

दर्द रहित प्रसव के लिए स्व-संमोहन का उपयोग किया जाता है और रोगी स्वयं प्रसव के अनावश्यक भय और दर्द को कम कर सकती है।

व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में स्व-संमोहन बहुत ही उपयोगी साबित होता है। स्वस्थ व्यक्ति स्व-संमोहन सीख सकता है और अपने व्यक्तित्व का उचित विकास कर सकता है और स्वयं को समाज के साथ समायोजित कर सकता है।

स्व-संमोहन को आज के युग की बिना दुष्प्रभाव वाली स्व-चिकित्सा पद्धति माना जा सकता है। आज इसका उपयोग व्यक्तिगत और अन्य क्षेत्रों में बढ़ रहा है। कई विद्वानों का मानना है कि स्व-संमोहन ध्यान-योग जैसी ही प्रक्रिया है, जिससे मन की शांति प्राप्त की जा सकती है और अनावश्यक चिंताओं से मुक्त रहा जा सकता है।

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