खेडा सत्याग्रह – किसानों का एक विशेष आंदोलन

इतिहास

खेडा जिले (गुजरात) के किसानों का एक विशेष आंदोलन महात्मा गांधी (2 अक्टूबर 1869 – 30 जनवरी 1948) और सरदार वल्लभभाई पटेल (31 अक्टूबर 1875 – 15 दिसंबर 1950) के नेतृत्व में आयोजित हुआ। इस सामूहिक आंदोलन को ‘खेडा सत्याग्रह’ के नाम से जाना जाता है।

1918 में खेडा जिले में अत्यधिक बारिश के कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। बारिश के कारण किसानों की झोपड़ियां, मवेशी, फसलें आदि सब प्रभावित हो गए। जिले के अधिकांश गांवों में यही स्थिति थी। खेती से उन्हें पर्याप्त आय नहीं हो रही थी, जिसके कारण किसानों के सामने भुखमरी की स्थिति आ गई। इसी बीच ब्रिटिश सरकार ने कर वसूली शुरू कर दी, जिससे किसानों की परेशानियां और बढ़ गईं। ब्रिटिश कानून के अनुसार, यदि फसल का उत्पादन 25% से कम हो जाए तो कर में छूट दी जाती है। इस आधार पर लगभग 22,000 किसानों ने सरकार के पास याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने कानूनी राहत और कर वसूली में छूट की मांग की। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनकी मांगों की अनदेखी की और 103 गांवों में 48% उपज होने की घोषणा कर दी। जबकि बाकी 500 गांवों में फसलें बिल्कुल भी नहीं हुई थीं। इसके बावजूद, सरकार ने कर वसूली जारी रखी।

महात्मा गांधी ने सरदार पटेल से किसानों के मुद्दों में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए कहा। पटेल ने किसानों का मनोबल बनाए रखने के लिए खेडा जिले का दौरा किया। उन्होंने 600 गांवों में से 425 गांवों में पदयात्रा की और बारिश के प्रभाव को देखा। पटेल ने खुद खेतों का निरीक्षण किया और स्थिति को सरकार के सामने प्रस्तुत किया। फिर भी सरकार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। तब महात्मा गांधी ने 22 मार्च 1918 को खेडा सत्याग्रह की घोषणा की।

सरदार पटेल ने इंदुलाल याज्ञिक, मोहनलाल पंड्या आदि की मदद से गांव-गांव जाकर किसानों को संगठित किया और उन्हें बताया कि “जो भी कष्ट आएं, उन्हें सहो, लेकिन कर की वसूली का भुगतान मत करो।” इस आह्वान पर हजारों किसानों ने एकजुट होकर अंग्रेजी प्रशासन का विरोध किया और कर वसूली के खिलाफ सख्त विरोध जताया। इसके जवाब में, अंग्रेजी सरकार ने किसानों पर जुल्म और दबाव बढ़ा दिया। सरकार ने किसानों की ज़मीन और संपत्ति को जब्त कर लिया। जब्त की गई ज़मीन की फसलें निकाल ली गईं और कई किसानों को जेल में डाल दिया गया। फिर भी किसानों ने शांति और अहिंसा के मार्ग से सरकार का विरोध जारी रखा। इस सत्याग्रह की सीमाएं बढ़ती चली गईं और गुजरात के अन्य जिलों के किसान भी एकजुट होकर अंग्रेजी सरकार का विरोध करने लगे। अंततः, अंग्रेजी सरकार ने झुकते हुए कर वसूली में छूट दी और नई कर वृद्धि को भी रद्द कर दिया। इसके साथ ही, जेल में बंद किसानों को रिहा कर दिया गया। यह पहला संघर्ष, जो सरदार पटेल के नेतृत्व में हुआ, सफल रहा। महात्मा गांधी ने इस विजय की मुक्तकंठ से सराहना की।

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