जैतून (Olea ferruginea) एक मध्यम आकार का सदाबहार वृक्ष है, जो भारत में कश्मीर से लेकर कुमाऊँ क्षेत्र तक 2,400 मीटर की ऊँचाई पर उगता है। यह वृक्ष अपनी अद्वितीय विशेषताओं और बहुमूल्य उपयोग के लिए प्रसिद्ध है। जैतून की खेती उत्तर भारत में की जाती है, जहाँ इसे ‘काहू’ या ‘बैरबांज’ के नाम से जाना जाता है।
वृक्ष का वर्णन
जैतून का वृक्ष लगभग 15 मीटर तक ऊँचा हो सकता है। इसकी छाल भूरे रंग की, चिकनी और पतली होती है। पत्तियाँ सरल, लंबी, लांसोलेट, टेढ़ी-मेढ़ी, नुकीली और विपरीत होती हैं। इसके फूल सफेद, छोटे, उभयलिंगी और नियमित होते हैं और पत्तियों की धुरी में तीन शाखाओं वाले सिम्स में आते हैं।
फल और लकड़ी का उपयोग
जैतून का फल अंडाकार (5-8 मिमी) होता है, जो पकने पर हरा से काला हो जाता है। हार्टवुड हल्के से गहरे भूरे या गहरे बैंगनी रंग का होता है, जो मजबूत, लचीला, कठोर, भारी और टिकाऊ होता है। यह लकड़ी हथियार के डंडे, लाठी, डंडे, खिलौने और नक्काशी के लिए आदर्श होती है। जैतून के बीज का तेल (जैतून का तेल) हरा, तिल जैसा स्वादिष्ट और खाने योग्य होता है। इसका उपयोग साबुन, चिकनाई आदि के लिए भी किया जाता है। जैतून का तेल स्वास्थ्यवर्धक गुणों के लिए जाना जाता है, यह शामक, कसैला और दर्द निवारक होता है।
उत्त्पादन और खेती
जैतून की नई रोपाई बीज या कलम लगाकर की जाती है। यूरोपीय जैतून (Olea europaea) एक अन्य प्रमुख प्रजाति है, जो पश्चिमी एशिया की मूल निवासी है और स्पेन, इटली, ग्रीस, पुर्तगाल आदि में व्यापक रूप से उगाई जाती है। इसकी खेती भूमध्यसागरीय देशों के साथ-साथ अमेरिका में भी की जाती है। इसका उपयोग भारतीय किस्म के समान ही होता है और भारत में इसकी खेती (भारतीय किस्म पर ग्राफ्टिंग करके) करने का प्रयास किया जा रहा है।
इतिहास और महत्व
जैतून का तेल बड़े पैमाने पर आयात किया जाता है। ईसा पूर्व 3000 वर्ष से पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में इसकी खेती की जाती रही है। जैतून का वृक्ष न केवल कृषि के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है। इसकी खेती से न केवल भूमि की उर्वरता बढ़ती है, बल्कि यह क्षेत्र की जैव विविधता को भी संरक्षित करता है।
जैतून का वृक्ष अपने विविध उपयोगों के लिए अद्वितीय है। इसका फल, तेल और लकड़ी सभी बहुमूल्य हैं। भारत में इसकी खेती और उपयोग का विस्तार करने की आवश्यकता है, ताकि इस अद्भुत वृक्ष के सभी लाभों का पूरा-पूरा उपयोग किया जा सके। जैतून न केवल स्वास्थ्यवर्धक है, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी लाभकारी है। इसकी खेती को प्रोत्साहित करने से न केवल कृषि क्षेत्र में सुधार होगा, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन भी बना रहेगा।