खेती भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और पौधों के पोषण की कमी से फसल की गुणवत्ता और उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। विभिन्न पोषक तत्वों की कमी के कारण पौधों में विभिन्न लक्षण दिखाई देते हैं जो अंततः फसल क्षति का कारण बनते हैं।
नाइट्रोजन (Nitrogen)
नाइट्रोजन पौधों की वृद्धि के लिए सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों में से एक है। नाइट्रोजन की कमी से निम्नलिखित लक्षण प्रकट होते हैं:
- पौधे की वृद्धि रुक जाती है।
- पौधों का रंग हल्का पीला हो जाता है।
- पत्तियाँ पौधे के आधार से अलग हो जाती हैं और उनके किनारे लाल भूरे रंग के हो जाते हैं।
- यह कमी पत्तियों के पीलेपन और समग्र कमजोर वृद्धि का कारण बनती है, जिससे फसल की उपज में कमी आती है।
फास्फोरस (Phosphorus)
फास्फोरस की कमी से पौधों में निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न होती हैं:
- जड़ की वृद्धि रुक जाती है।
- पौधे का रंग बैंगनी हो जाता है।
- तना धागे जैसा हो जाता है।
- पौधे के पकने में देरी होती है।
- फास्फोरस की कमी से पौधे कमजोर हो जाते हैं और फल व बीज उत्पादन में कमी आती है।
पोटैशियम (Potassium)
पोटैशियम की कमी से पौधों में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं:
- पत्तियों के किनारे घुंघराले जैसे दिखते हैं।
- तना कमज़ोर हो जाता है।
- बीज और फल सिकुड़े हुए दिखते हैं।
- पोटैशियम की कमी से पौधे रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं और फसल की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
कैल्शियम (Calcium)
पौधों को विकास में मदद करने, बीमारी का विरोध करने, चयापचय एसिड को बेअसर करने आदि के लिए कैल्शियम की आवश्यकता होती है। विशेषकर रसीले पौधों को इसकी आवश्यकता होती है। डोलोमाइट, जिप्सम या चूना पत्थर के साथ-साथ सुपरफॉस्फेट, नाइट्रोचॉक, नाइट्रोलिमस्टोन आदि उर्वरक पौधों को कैल्शियम की आपूर्ति करते हैं।
कैल्शियम की कमी से निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न होती हैं:
- पत्तियों के किनारों पर विभिन्न आकृतियाँ दिखाई देती हैं।
- अंतिम कलियाँ मर जाती हैं।
- फूलों की पंखुड़ियाँ समय से पहले गिर जाती हैं।
- कैल्शियम की कमी से पौधों में संरचनात्मक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे फसल का नुकसान होता है।
मैगनीशियम (Magnesium)
मैग्नीशियम: यह तत्व हरे पदार्थ (क्लोरोफिल) का एक घटक है। पौधों में, मैग्नीशियम फॉस्फेट के परिवहन, कार्बोहाइड्रेट और न्यूक्लियोप्रोटीन के निर्माण के साथ-साथ बीजों के निर्माण और विकास और लिपिड के निर्माण में सहायता करता है। नाइट्रोलिमस्टोन, सुपरफॉस्फेट आदि। नाइट्रोफॉस्फेट में उपयोग किए जाने वाले कुछ स्टेबलाइजर्स में अशुद्धता के रूप में मैग्नीशियम होता है। इन उर्वरकों के साथ यह मिट्टी में मिल जाता है। यह डोलोमाइट और मैग्नेशिया सल्फेट से प्राप्त किया जाता है।
मैगनीशियम की कमी से पौधों में निम्नलिखित लक्षण प्रकट होते हैं:
- पत्तियाँ पतली और भुरभुरी हो जाती हैं।
- पत्तियों की शिराओं और किनारों के बीच का स्थान फीका पड़ जाता है।
- मैगनीशियम की कमी से पौधे की ऊर्जा उत्पादन क्षमता में कमी आती है, जिससे फसल की वृद्धि और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
गंधक (Sulfur)
सल्फर पौधों को श्वसन में मदद करता है। यदि यह कम है, तो हरितद्रव्य उत्पन्न होने में समय लगता है और पौधे हल्के पीले रंग के दिखते हैं। सरसों, प्याज, लहसुन आदि की गंध और स्वाद गंधक पर निर्भर करता है। पौधों में सल्फर प्रोटीन, अमीनो एसिड, ग्लूटाथियोन, ट्रिपेप्टाइड आदि में पाया जाता है। मिट्टी में सल्फर की आपूर्ति सुपरफॉस्फेट, अमोनियम सल्फेट, जिप्सम रूप में की जाती है।
गंधक की कमी से निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न होती हैं:
- निचली पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं।
- जड़ों एवं तनों का व्यास छोटा हो जाता है।
- गंधक की कमी से पौधों में प्रोटीन उत्पादन प्रभावित होता है, जिससे फसल की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
बोरान (Boron)
बोरोनका उपयोग पौधों में प्रोटीन बनाने के लिए किया जाता है। इसकी कमी से कलियाँ मर जाती हैं। जड़ और गाजर जैसी फसलों के रेशे टूट जाते हैं। बोरॉन का छिड़काव बोरेक्स या सोडियम बोरेट के माध्यम से किया जाता है। यह पानी में घुलनशील है और 10·6% बोरान पैदा करता है।
बोरान की कमी से पौधों में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं:
- अंतिम कलियाँ हल्के हरे रंग की हो जाती हैं।
- जड़ों पर काले धब्बे दिखाई देते हैं।
- तने बौने हो जाते हैं।
- बोरान की कमी से फूल और फल बनने में बाधा आती है, जिससे फसल की उपज कम हो जाती है।
ताँबा (Copper)
ताँबा की कमी से पौधों में निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न होती हैं:
- पौधे का रंग जगह-जगह से उड़ जाता है।
- नींबू-समूह के पौधे लाल-भूरे रंग के दिखाई देते हैं।
- ताँबा की कमी से पौधों की प्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है, जिससे फसल पर विभिन्न रोगों का हमला बढ़ जाता है।
लोहा (Iron)
लोहा की कमी से पौधों में निम्नलिखित लक्षण प्रकट होते हैं:
- पत्तियाँ पीली हो जाती हैं लेकिन नसें हरी रहती हैं।
- पत्तियाँ ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं।
- लोहा की कमी से पौधे की श्वसन प्रक्रिया प्रभावित होती है, जिससे फसल की वृद्धि रुक जाती है।
मैंगनीज (Manganese)
मैंगनीज की कमी से निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न होती हैं:
- लक्षण मृत पत्ती ऊतक लोहे की तरह गिर जाता है।
- मैंगनीज की कमी से पौधों में श्वसन और नाइट्रोजन चयापचय प्रभावित होता है, जिससे फसल की उपज में कमी आती है।
मोलिब्डेनम (Molybdenum)
मोलिब्डेनम की कमी से पौधों में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं:
- पत्तियों का रंग पीला हो जाता है।
- पौधे की वृद्धि रुक जाती है।
- मोलिब्डेनम की कमी से पौधों में नाइट्रोजन का उपयोग करने की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे फसल की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
जस्ता (Zinc)
जस्ता की कमी से निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न होती हैं:
- लक्षण नाइट्रोजन के समान होते हैं।
- सिरे वाली पत्तियाँ छोटी हो जाती हैं।
- पत्तियाँ आकार में भिन्न हो जाती हैं और कुछ भाग मर जाते हैं।
- कलियाँ कम हो जाती हैं।
- जस्ता की कमी से पौधे की विकास दर में कमी आती है, जिससे फसल की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
निष्कर्ष
पोषक तत्वों की कमी के कारण फसल क्षति एक गंभीर समस्या है जिसे समय पर पहचान और उपचार की आवश्यकता होती है। किसानों को फसल के स्वास्थ्य की नियमित रूप से निगरानी करनी चाहिए और मिट्टी की जाँच करवानी चाहिए ताकि पौधों को आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति की जा सके। उचित पोषण प्रबंधन से न केवल फसल की उपज बढ़ेगी बल्कि फसल की गुणवत्ता भी बेहतर होगी, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और देश की खाद्य सुरक्षा भी मजबूत होगी।