अनसूया

अनसूया: सच्चे प्रेम का प्रतीक

धर्म

भारतीय पौराणिक कथाओं में अनसूया का स्थान बहुत महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक है। वह अत्रि मुनि की पत्नी थीं और अपनी पवित्रता, निष्ठा, और समर्पण के लिए प्रसिद्ध थीं। अनसूया का जीवन हमें नारी की महिमा और उसकी शक्ति के बारे में गहन सीख प्रदान करता है।

कर्दम पिता ओर देवहूती इसकी माता थी । यह दक्षकन्या भी थी। स्वायंभुव तथा वैवस्वत मन्वन्तर के ब्रह्म मानसपुत्र अत्रि ऋषिकी वो पत्नी थी ।अत्रि ऋषि जो सप्तर्षियों में से एक थे। अनसूया और अत्रि का दांपत्य जीवन पवित्रता, समर्पण और सच्चे प्रेम का प्रतीक है। ऋग्वेद के बाईसवें परिशिष्ट में केवल अत्रि की प्रियपत्नी ऐसा इसका उल्लेख है। पौराणिक वाङ्मय में पतिव्रता कह कर इसका उल्लेख है। इसने निराहार तीन सौ वर्षों तक तप कर के शंकर की कृपा संपादित की। इससे इसे दत्तात्रेय, दुर्वासस् तथा चन्द्र नामक तीन पुत्र हुए। चित्रकूट की गंगा इसने प्रवृत्त की। उनका नाम “अनसूया” इस बात का प्रतीक है कि वह कभी किसी से ईर्ष्या नहीं करती थीं। यह गुण उनके चरित्र की पवित्रता और महानता को दर्शाता है।


अनसूया की महानता का एक प्रमुख उदाहरण उनके तप और शक्ति का है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु, और महेश तीनों देवताओं ने अनसूया की पवित्रता की परीक्षा लेने का निश्चय किया। वे तीनों भिक्षुक के वेश में अनसूया के आश्रम पहुंचे और उनसे भोजन की मांग की, लेकिन एक शर्त रखी कि वह उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन परोसे। अनसूया ने अपनी पवित्रता और अपने पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए अपनी दिव्य शक्ति से तीनों देवताओं को बालक बना दिया और उन्हें माँ के रूप में स्तनपान कराया। उनकी इस अद्वितीय भक्ति और पवित्रता से प्रभावित होकर तीनों देवताओं ने अपनी वास्तविक रूप में प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया।

राम वनवास को जाते समय अत्रि के आश्रम में आये थे। तब अत्रि ने निम्नोल्लेखित अनसूया का वर्णन कर के, सीता को, उसके दर्शनार्थ भेजने के लिये राम से कहा। दस वर्षोंतक पर्जन्यवृष्टि न होने पर लोग दग्ध होने लगे तब अनसूया ने फलमूल उत्पन्न कर के आश्रम में गंगा लाई। यह उग्र तपश्चर्या करनेवाली एवं कड़क नियमोंवाली है। दस हजार वर्षों तक इसने बड़ी तपस्या की है। इसके व्रतों से ही ऋषियों की तपस्या के मार्ग में आनेवाले विघ्न दूर हुए। देवकार्यों के लिये परिश्रम करते समय दस रातों की एक रात्रि इसने बनाई। सीता ने जब इसका दर्शन लिया तब इसके गात्र शिथिल हो गये थे। शरीर पर झुर्रियाँ पड़ गई थी। बाल सफेद थे। हवा से हिलनेवाली कदली के समान इसकी स्थिति हो गई थी। पतिसमवेत वनवास स्वीकारने के लिये, सीता की इसने प्रशंसा की तथा निरंतर ताजी रहनेवाली माला, वस्त्र, भूषण, उबटन, अनुलेपन इ. वस्तुएं दी । तदनंतर स्वयंवर के बारे में, प्रेम
से सीता के साथ बातें की। उसे अलंकार पहना कर बड़े प्यार से बिदा किया ।

मांडव्य ऋषि को जब शूली पर चढाया गया था, तब उस शूल को अंधकार में एक ऋषिपत्नी का धोखे से धक्का लगा, तब मांडव्य ने उसे शाप दिया कि, सूर्योदय होते ही तुम विधवा हो जाओगी। तब उसने सूर्योदय ही नहीं होने दिया। इससे सारे व्यवहार बंद हो गये। उसकी अनसूया सखी होने के कारण, जब प्रार्थना की गई तब उसे वैधव्य प्राप्ति न होने देते हुए, इसने सूर्योदय करवा कर समस्त संसार को सुखी किया ।


अनसूया और अत्रि मुनि के तीन पुत्र हुए: दत्तात्रेय, दुर्वासा और चन्द्रमा। दत्तात्रेय को त्रिदेवों का अवतार माना जाता है, जो अनसूया की महान तपस्या और पवित्रता का परिणाम था। दुर्वासा ऋषि अपने क्रोध और तपस्या के लिए प्रसिद्ध थे, जबकि चन्द्रमा का महत्वपूर्ण स्थान वैदिक ज्योतिष और भारतीय पौराणिक कथाओं में है।

भारतीय समाज में अनसूया का चरित्र और उनकी कथाएँ एक प्रेरणा स्रोत हैं। वे स्त्रियों को अपने धर्म, पति और परिवार के प्रति निष्ठा रखने की शिक्षा देती हैं। उनका जीवन इस बात का संदेश है कि सच्ची निष्ठा और समर्पण के साथ किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है। अनसूया की कथा बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को प्रेरित करती है और सिखाती है कि नारी की शक्ति अपार है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *