कंस, भारतीय महाकाव्य महाभारत और पुराणों में वर्णित एक प्रमुख पात्र है, जिन्हें विशेष रूप से भागवत पुराण में विस्तार से वर्णित किया गया है। कंस का व्यक्तित्व उसकी अत्यधिक क्रूरता और अत्याचार के लिए जाना जाता है। कंस मल्लविद्या में निपुण, शूरवीर, और शस्त्र विद्या में पारंगत था। कंस मथुरा का राजा था और वृष्णि वंश के यादव कुल का सदस्य था। वह उग्रसेन का पुत्र और भगवान कृष्ण का मामा था। कंस का जन्म उग्रसेन और पवनरेखा के पुत्र के रूप में हुआ था। उसकी मां को दानव दुमिल से संतान प्राप्त हुई थी।
कंस का पूर्वजन्म
कंस पूर्वजन्म में कालनेमि नामक असुर था। विष्णु के साथ युद्ध में मारे जाने के बाद, शुक्र ने संजीवनी विद्या से उसे पुनर्जीवित किया। इस बार, कंस ने मंदार पर्वत पर तपस्या की और ब्रह्मदेव से वरदान प्राप्त किया कि उसे देवों के हाथों मृत्यु नहीं मिलेगी। अगले जन्म में, कंस ने उग्रसेन की पत्नी के गर्भ से जन्म लिया और बढ़ते हुए अपनी शक्ति और सामर्थ्य का प्रदर्शन किया।
कंस के शक्तिशाली सहयोगी
कंस के शक्तिशाली सहयोगी, जैसे जरासंध, प्रलंब, और बक, उसकी शक्ति को और बढ़ाते थे। यादवों पर अत्याचार बढ़ते गए, जिससे प्रमुख यादव कुरु, पांचाल, केकय, शाल्व, विदर्भ, निषध, बिदेह, और कोसल जैसे अन्य देशों में चले गए। कुछ ने कंस के प्रति वफादारी दिखाकर उसके पास रहना पसंद किया। कंस ने चाणूर, मुष्टिक, कूट, शल, और तोशलक जैसे मल्लों को अपने नियंत्रण में ले लिया, जो उसकी सेना को और मजबूत करते थे।
जब जरासंध ने कंस की शक्तियों को देखा, तो उसने अपनी दो कन्याएं, अस्ति और प्राप्ति, का विवाह कंस से कर दिया। कंस ने भी अपनी शक्ति को बढ़ाते हुए माहिष्मती के राजा के पुत्र चाणूर, मुष्टिक, कूट, शल, और तोशलक को मल्लयुद्ध के द्वारा अपने अधीन कर लिया।
आकाशवाणी
जरासंध ने अपनी कन्या कंस को राज्याभिषेक की शर्त पर दी थी, जिससे कंस का प्रभाव और बढ़ गया। उग्रसेन की सत्ता हड़पकर कंस ने अपने पिता को कारागृह में डाल दिया और वसुदेव को भी बंदी बना लिया।कंस का वसुदेव और देवकी के साथ संबंध तनावपूर्ण था, हालांकि वे यदुवंश से संबंधित थे। जब देवकी और वसुदेव का विवाह हुआ, तो कंस ने स्वयं रथ हाँककर उन्हें विदा किया। इस दौरान आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा। यह सुनकर कंस ने देवकी की हत्या का प्रयास किया, लेकिन वसुदेव ने उन्हें बचाने का वादा किया कि वे अपने सभी पुत्रों को कंस को सौंप देंगे। कंस ने पहले पुत्र को वापस जाने दिया, परंतु आठवें पुत्र से डरते हुए, उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया और उनके सभी पुत्रों का वध करना शुरू कर दिया।
कंस और कृष्ण
कंस और कृष्ण का वैर पुराना था। कंस ने कृष्ण को मारने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन हर बार कृष्ण उसकी योजनाओं से बच निकलते। कंस ने पूतना को गोकुल भेजा, जिसने कृष्ण को मारने की कोशिश की, लेकिन असफल रही। अंततः, कंस ने मल्लयुद्ध का आयोजन किया और अपने पहलवानों के माध्यम से कृष्ण को मारने की योजना बनाई। कृष्ण और बलराम, जो कि प्रसिद्ध पहलवान थे, ने इस चुनौती को स्वीकार किया। उन्होंने धनुर्याग का आयोजन किया, जहां कृष्ण ने परशुराम का धनुष चढ़ाया और उसे तोड़ भी दिया। इसके बाद, कृष्ण ने कंस के मत्त हाथी को मार डाला और उसके पहलवान चाणूर और तोशलक को भी पराजित किया। बलराम ने मुष्टिक और अन्य मल्लों को हराया।
अंततः, कृष्ण ने कंस को सिंहासन से खींचकर नीचे गिराया और उसका वध किया। कंस के शरीर पर कृष्ण के नखों के निशान रह गए। इस प्रकार, कंस का अंत हुआ और उसके भाईयों का भी बलराम द्वारा वध किया गया। इस प्रकार, कंस के अत्याचारों का अंत हुआ और यदुवंश में शांति और न्याय की स्थापना हुई।
उपदोघात
कंस की कहानी भगवान कृष्ण की लीलाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। वह एक ऐसा चरित्र है जो अपनी क्रूरता, शक्ति और अहंकार के कारण जाना जाता है। कंस की कथा हमें यह सिखाती है कि अत्याचार और अधर्म का अंत निश्चित है और धर्म की विजय सदा होती है।कंस की कथा भारतीय पौराणिक साहित्य में न केवल एक खलनायक की कहानी है, बल्कि यह अधर्म के खिलाफ धर्म की जीत का प्रतीक भी है।